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________________ श. ९ : उ. ३२ : सू. ११४-१२० भगवती सूत्र ११४. भंते! देव-प्रवेशनक कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गांगेय! चार प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-भवनवासी-देव-प्रवेशनक यावत् वैमानिक-देव -प्रवेशनक। ११५. भंते! एक देव देव-प्रवेशनक में प्रवेश करता हुआ क्या भवनवासी में होता है? वाणमंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक में होता है? गांगेय! भवनवासी में होता है, वाणमंतर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक में होता है। ११६. भंते! दो देव देव-प्रवेशनक में प्रवेश करते हुए भवनवासी में होते हैं? पृच्छा। गांगेय! भवनवासी में होते हैं, वाणमंतर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक में होते हैं। अथवा एक भवनवासी में और एक वाणमंतर में होता है। इस प्रकार जैसे तिर्यग्योनिक-प्रवेशनक वैसे देव-प्रवेशनक वक्तव्य है यावत् असंख्येय। ११७. भंते! उत्कृष्ट देव-पृच्छा। गांगेय! सब ज्योतिष्क में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और भवनवासी में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और वाणमंतर में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क और वैमानिक में होते है। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वाणमंतर में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी और वैमानिक में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, वाणमंतर और वैमानिक में होते हैं। अथवा ज्योतिष्क, भवनवासी, वाणमंतर और वैमानिक में होते हैं। ११८. भंते! इन भवनवासी में प्रवेश करने वाले, वाणमंतर मे प्रवेश करने वाले, ज्योतिष्क में प्रवेश करने वाले और वैमानिक में प्रवेश करने वाले देवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गांगेय! वैमानिक में प्रवेश करने वाले देव सबसे अल्प है, भवनवासी में प्रवेश करने वाले देव उनसे असंख्येय गुण हैं, वाणमंतर में प्रवेश करने वाले देव उनसे असंख्येय-गुण हैं, ज्योतिष्क में प्रवेश करने वाले देव उनसे संख्येय गुण हैं। ११९. भंते! इन नैरयिक में प्रवेश करने वालों, तिर्यग्योनिक में प्रवेश करने वालों, मनुष्य में प्रवेश करने वालों और देव में प्रवेश करने वालों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गांगेय! मनुष्य में प्रवेश करने वाले सबसे अल्प हैं, नैरयिक में प्रवेश करने वाले उनसे असंख्येय-गुण हैं, देव में प्रवेश करने वाले उनसे असंख्येय-गुण हैं, तिर्यग्योनिक में प्रवेश करने वाले उनसे असंख्येय-गुण हैं। सांतर-निरन्तर-उपपन्न-आदि-पद १२०. भंते! नैरयिक अंतर-सहित उपपन्न होते हैं? निरंतर उपपन्न होते हैं? असुरकुमार अंतर -सहित उपपन्न होते हैं? निरंतर उपपन्न होते हैं? यावत् वैमानिक अंतर-सहित उपपन्न होते हैं? निरंतर उपपन्न होते हैं? ३५८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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