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________________ श. ९ : उ. ३१ : सू. १०-१६ भगवती सूत्र गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवली-प्रज्ञप्त-धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। ११. भंते! क्या कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है? गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। १२. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता? गौतम ! जिसके दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है। जिसके दर्शनावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त नहीं कर सकता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवल बोधि को प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता। १३. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है? गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता। १४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता? गौतम! जिसके धर्मान्तराय कर्म का क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है। जिसके धर्मान्तराय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित नहीं हो सकता। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना मुंड होकर अगार से केवल अनगार धर्म में प्रव्रजित हो सकता है और कोई नहीं हो सकता। १५. भंते! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है? गौतम! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है और कोई नहीं रह सकता। १६. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है कोई पुरुष सुने बिना केवल ब्रह्मचर्यवास में रह सकता है और कोई नहीं रह सकता? गौतम! जिसके चरित्रावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक ३३६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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