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________________ भगवती सूत्र श. ९: उ. २-३१ : सू. ५-१० इस प्रकार सब द्वीप-समुद्रों में ज्योतिष्क की वक्तव्यता यावत् स्वयंभूरमण में यावत् शोभित हुए थे, हो रहे हैं और होंगे । ६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । ३-३०वां उद्देशक अन्तर्द्वीप-पद ७. भगवान् राजगृह नगर में आए यावत् गौतम इस प्रकार बोले भंते! दक्षिण दिशा में एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक द्वीप नामक द्वीप कहां प्रज्ञप्त है ? गौतम ! जम्बूद्वीप द्वीप में मंदर पर्वत के दक्षिण दिशा में क्षुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के पूर्वी चरमान्त से लवणसमुद्र के उत्तरपूर्व में तीन सौ योजन का अवगाहन करने पर वहां दक्षिण दिशा वाले एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नाम का द्वीप है। वह तीन सौ योजन लम्बा चौड़ा है । उसकी परिधि नौ सौ उनपचास योजन कुछ विशेष न्यून है । वह एकोरुक द्वीप एक पद्मवर-वेदिका और एक वनषण्ड से चारों तरफ घिरा हुआ है। दोनों का प्रमाण और वर्णन । इस क्रम से इस प्रकार जीवाभिगम (३ / २१७ ) की भांति वक्तव्यता यावत् शुद्धदंत द्वीप है और उन द्वीपों के वासी मनुष्य मृत्यु के पश्चात् देवलोक में उत्पन्न होते हैं, आयुष्मन् श्रमण ! इस प्रकार अट्ठाईस अंतद्वीप अपनी अपनी लम्बाई और चौड़ाई के साथ वक्तव्य हैं। इ विशेष है कि प्रत्येक द्वीप का एक उद्देशक है । इस प्रकार अट्ठाईस उद्देशक हो जाते हैं । ८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । इकतीसवां उद्देशक अश्रुत्वा - उपलब्धि-पद ९. भगवान् राजगृह नगर में आए, यावत् गौतम इस प्रकार बोले- भंते! क्या कोई पुरुष केवली, केवली के श्रावक, केवली की श्राविका, केवली के उपासक, केवली की उपासिका, तत्पाक्षिक ( स्वयंबुद्ध), तत्पाक्षिक के श्रावक, तत्पाक्षिक की श्राविका, तत्पाक्षिक के उपासक, तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवली - प्रज्ञप्त-धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है ? गौतम ! कोई पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवली - प्रज्ञप्त-धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है, कोई नहीं कर सकता । १०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - कोई पुरुष सुने बिना केवली - प्रज्ञप्त-धर्म का ज्ञान प्राप्त कर सकता है और कोई नहीं कर सकता ? गौतम ! जिसके ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम होता है, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवली - प्रज्ञप्त-धर्म को प्राप्त कर सकता है। जिसके ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, वह पुरुष केवली यावत् तत्पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना केवली - प्रज्ञप्त-धर्म का ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । ३३५
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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