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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. ८ : सू. ३३३-३४२ ३३३. भंते! क्या जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र को अवभासित करते हैं? वर्तमान क्षेत्र को अवभासित करते हैं? अनागत क्षेत्र को अवभासित करते हैं? गौतम! जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र को अवभासित नहीं करते, वर्तमान क्षेत्र को अवभासित करते हैं, अनागत क्षेत्र को अवभासित नहीं करते। ३३४. भंते! क्या सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करते हैं? अथवा अस्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करते हैं? गौतम ! सूर्य स्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित करते हैं, अस्पृष्ट क्षेत्र को अवभासित नहीं करते यावत् नियमतः छहों दिशाओं को अवभासित करते हैं। ३३५. भंते! क्या जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र को उद्योतित करते हैं? गौतम! इसी प्रकार यावत् नियमतः छहों दिशाओं को उद्योतित करते हैं। ३३६. इसी प्रकार तप्त और प्रभासित की वक्तव्यता यावत् नियमतः छहों दिशाओं को तप्त और प्रभासित करते हैं। ३३७. भंते! क्या जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र में क्रिया करते हैं? वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करते हैं? अनागत क्षेत्र में क्रिया करते हैं? गौतम! जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य अतीत क्षेत्र में क्रिया नहीं करते, वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करते हैं, अनागत क्षेत्र में क्रिया नहीं करते। ३३८. भंते! क्या वह क्रिया स्पृष्ट होती है? अस्पृष्ट होती है? गौतम! वह क्रिया स्पृष्ट होती है, अस्पृष्ट नहीं होती यावत् नियमतः छहों दिशाओं में स्पृष्ट होती है। ३३९. भंते! जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य कितने ऊर्ध्व क्षेत्र में तपते हैं? कितने अधो क्षेत्र में तपते हैं? कितने तिर्यक् क्षेत्र में तपते हैं? गौतम! जंबूद्वीप द्वीप में सूर्य ऊर्ध्व-क्षेत्र में एक सौ योजन में तपते है, अधो-क्षेत्र में अठारह सौ योजन में तपते हैं, तिर्यक् क्षेत्र में सैंतालीस-हजार-दो-सौ-तिरसठ-योजन-इक्कीस/साठ (४७२६३२१) योजन क्षेत्र में तपते हैं। ज्योतिष्कों का उपपत्ति-पद ३४०. भंते! मानुषोत्तर पर्वत के अंतर्ववर्ती जो चंद्र-, सूर्य-, ग्रहगण-, नक्षत्र- और तारा-रूप हैं, भंते! वे देव क्या ऊर्ध्व-उपपन्नक हैं? . जीवाजीवाभिगम (तीसरी प्रतिपत्ति) की भांति निरवशेष रूप में वक्तव्य है यावत्३४१. भंते! इन्द्रस्थान उपपात से कितने काल तक विरहित रहता है? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कृष्टतः छह मास । ३४२. भंते! मानुषोत्तर पर्वत के बाह्यवर्ती चंद्र-, सूर्य-, ग्रहगण-, नक्षत्र- और तारा-रूप हैं। भंते! वे क्या ऊर्ध्व-उपपन्नक हैं ? ३११
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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