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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. ७ : सू. २८०-२८८ कोई पुरुष उस द्रव्य का अपहरण कर लेता है। वह द्रव्य हमारा है, गृहपति का नहीं। इस हेतु से हम कह रहे हैं हम दत्त का ग्रहण करते हैं, दत्त का उपभोग करते हैं, दत्त का अनुमोदन करते हैं। दत्त का ग्रहण, उपभोग और अनुमोदन करने के कारण हम तीन योग और तीन करण से संयत, विरत, अतीत के पापकर्म का प्रतिहनन करने वाले, भविष्य के पापकर्म का प्रत्याख्यान करने वाले यावत् एकान्त पण्डित भी हैं। आर्यो! तुम स्वयं तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप-कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप-कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले यावत् एकान्त बाल भी हो। २८१. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा–आर्यो! कैसे हम तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप-कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप-कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले यावत् एकान्त बाल भी हैं? २८२. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा–आर्यो! तुम अदत्त का ग्रहण कर रहे हो, अदत्त का उपभोग कर रहे हो, अदत्त का अनुमोदन कर रहे हो। अदत्त का ग्रहण, उपभोग और अनुमोदन करने के कारण तुम असंयत यावत् एकान्त बाल भी हो। २८३. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा–आर्यो! कैसे हम अदत्त का ग्रहण कर रहे हैं यावत एकान्त बाल भी हैं? २८४. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा–आर्यो! तुम्हें जो द्रव्य दिया जा रहा है, वह अदत्त है,जो प्रतिगृह्यमाण है, वह अप्रतिगृहीत है, जो निसृज्यमाण है, वह अनिसृष्ट है। आर्यो! तुम्हें जो द्रव्य दिया जा रहा है और वह पात्र में गिरा नहीं है बीच में ही कोई पुरुष उस द्रव्य का अपहरण कर लेता है, वह द्रव्य गृहपति का है, तुम्हारा नहीं। इस हेतु से तुम अदत्त का ग्रहण करते हो यावत् एकान्त बाल भी हो। हिंसा की अपेक्षा २८५. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा–आर्यो! तुम तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पाप-कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले यावत् एकान्त बाल भी हो। २८६. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा–आर्यो! कैसे हम तीन योग और तीन करण से असंयत यावत एकान्त बाल भी हैं? २८७. उन अन्ययूथिकों ने भगवान स्थविरों से इस प्रकार कहा–आर्यो! तुम गमन करते हुए पृथ्वी को आक्रांत, अभिहत, क्षुण्ण, श्लिष्ट, संहत, स्पृष्ट, परितप्त, क्लान्त और उपद्रुत (प्राण-रहित) करते हो। तुम पृथ्वी को आक्रांत, अभिहत, क्षुण्ण, श्लिष्ट, संहत, स्पृष्ट, परितप्त, क्लान्त और उपद्रुत करने के कारण तीन योग और तीन करण से असंयत, अविरत, अतीत के पापकर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पापकर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले यावत् एकान्त बाल भी हो। २८८. भगवान स्थविरों ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा–आर्यो! हम गमन करते हुए पृथ्वी को न आक्रांत, अभिहत, यावत् उपद्रुत करते हैं। आर्यो! हम शारीरिक आवश्यकता ३०३
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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