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________________ भगवती सूत्र श. ८ : उ. १ : सू. ६०-६५ अथवा वक्तव्यता है वैसा यहां भी वक्तव्य है । यावत् पर्याप्तक- सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक -देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय- शरीर- काय प्रयोग-परिणत है अपर्याप्तक-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक- कल्पातीतग-वैमानिक -देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय - शरीरकाय प्रयोग - परिणत है । ६१. यदि वैक्रिय - मिश्र - शरीर काय प्रयोग- परिणत है तो क्या एकेन्द्रिय-मिश्र - शरीर-काय- प्रयोग- परिणत है ? अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-मिश्र - शरीर-काय प्रयोग - परिणत है ? इस प्रकार जैसे वैक्रिय की वक्तव्यता है वैसे ही वैक्रिय-मिश्र की भी वक्तव्यता । केवल इतना विशेष है - देव - नैरयिकों के अपर्याप्तक और शेष के पर्याप्तक यावत् पर्याप्त- सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक- देव-पंचेन्द्रिय-वैक्रिय - मिश्र - शरीर-काय - प्रयोग- परिणत नहीं अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक - देव-पंचेन्द्रिय- वैक्रिय - मिश्र - शरीर काय - प्रयोग हैं, - परिणत है। - ६२. यदि आहारक- शरीर-काय प्रयोग- परिणत है तो क्या मनुष्य आहारक- शरीर काय- प्रयोग - परिणत है ? अथवा अमनुष्य आहारक- शरीर काय प्रयोग - परिणत है ? इस प्रकार जैसी अवगाहना संस्थान नामक पण्णवणा के २१वें पद में आहारक - शरीर की वक्तव्यता है वैसा यहां भी वक्तव्य है यावत् ऋद्धि प्राप्त प्रमत्त संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक- संख्येय-वर्ष - आयुष्य वाला आहारक- शरीर काय प्रयोग परिणत है, ऋद्धि- अप्राप्त-प्रमत्त-संयत-सम्यग्दृष्टि-पर्याप्त संख्येय-वर्ष - आयुष्य वाला आहारक- शरीर-काय प्रयोग परिणत नहीं है । ६३. यदि आहारक-मिश्र - शरीर- काय प्रयोग-परिणत है तो क्या मनुष्य आहारक - मिश्र - शरीर- काय- प्रयोग - परिणत है ? इस प्रकार जैसी आहारक- शरीर की वक्तव्यता है वैसे आहारक - मिश्र - शरीर के विषय में भी अविकल रूप से वक्तव्य है । ६४. यदि कर्म - शरीर काय प्रयोग- परिणत है तो क्या एकेन्द्रिय-कर्म- शरीर काय-प्रयोग- परिणत है ? यावत् पंचेन्द्रिय-कर्म- शरीर- काय - प्रयोग - परिणत है ? गौतम ! एकेन्द्रिय-कर्म-शरीर- काय प्रयोग-परिणत । इस प्रकार जैसी अवगाहना - संस्थान नामक पण्णवणा के २१वें पद में कर्म के भेद की वक्तव्यता है वैसे यहां भी वक्तव्य है यावत् पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतग-वैमानिक -देव-पंचेन्द्रिय-कर्म-शरीर - काय- प्रयोग- परिणत है, यावत् अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक - कल्पातीतग- वैमानिक -देव-पंचेन्द्रिय-कर्म- शरीर- काय प्रयोग - परिणत है । मिश्र परिणति पद ६५. यदि मिश्र - परिणत है तो क्या मन-मिश्र-परिणत है ? वचन मिश्र परिणत है ? अथवा काय - मिश्र - परिणत है ? गौतम ! वह मन - मिश्र-परिणत है अथवा वचन मिश्र परिणत है, अथवा काय मिश्र - परिणत है । २७०
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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