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________________ भगवती सूत्र श. ७ : उ. १० : सू. २३०-२३३ कालोदायी ! क्रुद्ध अनगार ने तेजोलेश्या का निसर्जन किया, वह दूर जाकर दूर देश में गिरती है, पार्श्व में जाकर पार्श्व देश में गिरती है । वह जहां-जहां गिरती है, वहां-वहां उसके अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते हैं और प्रभासित करते हैं। कालोदायी! इस प्रकार वे अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं, उद्योतित करते हैं, तप्त करते हैं और प्रभावित करते हैं। २३१. कालोदायी अनगार, श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन नमस्कर करता है, वन्दन नमस्कार कर अनेक चतुर्थ भक्त, षष्ठ भक्त, अष्टम-भक्त, दशम-भक्त, द्वादश-भक्त, अर्ध-मास और मास क्षपण - इस प्रकार विचित्र तपः कर्म द्वारा आत्मा को भावित करता हुआ विहार कर रहा है। २३२. कालोदायी अनगार यावत् चरम उच्छ्वास- निःश्वासों के साथ सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त, परिनिर्वृत और सब दुःखों का नाश करने वाला हो गया । २३३. भन्ते ! भन्ते ! वह ऐसा ही है । भन्ते ! वह ऐसा ही है । २५९
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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