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________________ श. ७ : उ. १० : सू. २२६-२३० भगवती सूत्र में न दुःखरूप में बार-बार परिणत होता है। कालोदायी! इसी प्रकार जीवों के कल्याण-कर्म कल्याण-फल-विपाक-संयुक्त होते हैं। २२७. भन्ते! दो पुरुष जो एक जैसे समान त्वचा वाले, समान वय वाले और समान भाण्ड, पात्र, उपकरण वाले हैं, परस्पर मिलकर अग्निकाय का समारम्भ करते हैं। उनमें एक पुरुष अग्निकाय को प्रज्वलित करता है और दूसरा पुरुष उसे बुझाता है। भन्ते! इन दोनों पुरुषों में कौन-सा पुरुष महत्तर कर्म वाला होता है? महत्तर क्रिया वाला होता है? महत्तर आश्रव वाला होता है? महत्तर वेदना वाला होता है? और कौन-सा पुरुष अल्पतर कर्म वाला होता . है? अल्पतर क्रिया वाला होता है? अल्पतर आश्रव वाला होता है? अल्पतर वेदना वाला होता है ष आग्नकाय को प्रज्वलित करता है तथा जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है? कालोदायी! उनमें जो पुरुष अग्निकाय को प्रज्वलित करता है, वह पुरुष महत्तर कर्म, महत्तर क्रिया, महत्तर आश्रव और महत्तर वेदना वाला है। जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है, वह पुरुष अल्पतर कर्म, अल्पतर क्रिया अल्पतर आश्रव और अल्पतर वेदना वाला होता है। २२८. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है जो पुरुष अग्निकाय को प्रज्वलित करता है, वह पुरुष महत्तर कर्म वाला होता है? महत्तर क्रिया वाला होता है? महत्तर आश्रव वाला होता है? महत्तर वेदना वाला होता है? जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है, वह पुरुष अल्पतर कर्म वाला होता है? अल्पतर क्रिया वाला होता है? अल्पतर आश्रव वाला होता है? अल्पतर वेदना वाला होता है? कालोदायी! जो पुरुष अग्निकाय को प्रज्वलित करता है, वह पुरुष बहुतर पृथ्वीकाय का समारम्भ करता है, बहुतर अप्काय का समारम्भ करता है, अल्पतर तेजस्काय का समारम्भ करता है, बहुतर वायुकाय का समारम्भ करता है, बहुतर वनस्पतिकाय का समारम्भ करता है, बहुतर त्रसकाय का समारम्भ करता है। जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है, वह पुरुष अल्पतर पृथ्वीकाय का समारम्भ करता है, अल्पतर अप्काय का समारम्भ करता है, बहुतर तेजस्काय का समारम्भ करता है, अल्पतर वायुकाय का समारम्भ करता है, अल्पतर वनस्पतिकाय का समारम्भ करता है, अल्पतर त्रसकाय का समारम्भ करता है। कालोदायी! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है जो पुरुष अग्निकाय का प्रज्वलित करता है, वह पुरुष महत्तर कर्म, महत्तर क्रिया, महत्तर आश्रव, महत्तर वेदना वाला होता है। जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है, वह पुरुष अल्पतर कर्म, अल्पतर क्रिया, अल्पतर आश्रव और अल्पतर वेदना वाला होता है। २२९. भन्ते! क्या अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं? उद्द्योतित करते हैं? तप्त करते हैं? प्रभासित करते हैं? हां, करते हैं। २३०. भन्ते! वे कौन से अचित्त पुद्गल भी वस्तु को अवभासित करते हैं? उद्द्योतित करते हैं? तप्त करते है? प्रभासित करते हैं? २५८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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