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________________ भगवती सूत्र श. ७ : उ. ५,६ : सू. ९९-१०४ पांचवां उद्देशक योनिसंग्रह-पद ९९. राजगृह नगर में महावीर का समवसरण यावत् गौतम ने कहा-भन्ते! खेचर पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों का योनि-संग्रह कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! तीन प्रकार का योनि-संग्रह प्रज्ञप्त है, जैसे-अण्डज, पोतज, सम्मूर्छिम । इस प्रकार यह प्रकरण जीवाजीवाभिगम (३/१४७-१८२) की भांति वक्तव्य है यावत् वे उन विमानों का अतिक्रमण नहीं करते। गौतम! वे विमान इतने महान् प्रज्ञप्त हैं। १००. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। छठा उद्देशक आयुष्क-प्रकरण-वेदना-पद १०१. राजगृह नगर में महावीर का समवसरण यावत् गौतम! ने इस प्रकार कहा-भन्ते! जो भविक जीव नैरयिक-रूप में उपपन्न होने वाला है, भन्ते! क्या वह यहां रहता हुआ नैरयिकआयुष्य का बंध करता है? उपपन्न होता हुआ नैरयिक-आयुष्य का बंध करता है? उपपन्न होने पर नैरयिक-आयुष्य का बंध करता है? गौतम! वह यहां रहता हुआ नैरयिक-आयुष्य का बंध करता है, उपपन्न होता हुआ नैरयिकआयुष्य का बंध नहीं करता, उपपन्न होने पर नैरयिक-आयुष्य का बंध नहीं करता। असुर-कुमारों के लिए भी यही नियम है। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के लिए भी यही नियम है। १०२. भन्ते! जो भविक जीव नैरयिक-रूप में उपपन्न होने वाला है, भन्ते! क्या वह यहां रहता हुआ नैरयिक-आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है? उपपन्न होता हुआ नैरयिक-आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है? उपपन्न होने पर नैरयिक आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है? गौतम! वह यहां रहता हुआ नैरयिक-आयुष्य प्रतिसंवेदन नहीं करता, उपपन्न होता हुआ नैरयिक-आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, उपपन्न होने पर भी नैरयिक-आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों के लिए यही नियम है। १०३. भन्ते! जो भविक जीव नैरयिक-रूप में उपपन्न होने वाला है, भन्ते! क्या वह यहां रहता हुआ (मृत्युक्षण में) महा-वेदना वाला होता है? उपपन्न होता हुआ महा-वेदना वाला होता है ? उपपन्न होने पर महा-वेदना वाला होता है? गौतम! वह यहां रहता हुआ स्यात् महा-वेदना वाला होता है, स्यात् अल्प-वेदना वाला होता है। उपपन्न होता हुआ स्यात् महा-वेदना वाला होता है, स्यात् अल्प-वेदना वाला होता है। उपपन्न होने के पश्चात् एकान्त दुःखद वेदना का वेदन करता है और कदाचित् सात वेदना का वेदन करता है। १०४. भन्ते! जो भविक जीव असुरकुमारों में उपपन्न होने वाला है, पृच्छा। गौतम! वह यहां रहता हुआ स्यात् महा-वेदना वाला होता है, स्यात् अल्प-वेदना वाला २३७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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