SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श. ७ : उ. ३,४ : सू. ८९-९८ भगवती सूत्र गौतम! जिस समय वेदना करत है उस समय निर्जरा नहीं करते। जिस समय निर्जरा करते हैं उस समय वेदना नहीं करते-अन्य समय में वेदना करते हैं, अन्य समय में निर्जरा करते हैं। वेदना का समय अन्य है, निर्जरा का समय अन्य है। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् जो निर्जरा का समय है वह वेदना का समय नहीं है। जो वेदना का समय है वह निर्जरा का समय नहीं है। ९०. भन्ते! क्या नैरयिकों के जो वेदना का समय है वही निर्जरा का समय है, जो निर्जरा का समय है वही वेदना का समय है। गौतम! यह अर्थ संगत नहीं है। ९१. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिकों के जो वेदना का समय है वह निर्जरा का समय नहीं है? जो निर्जरा का समय है वह वेदना का समय नहीं है? गौतम ! नैरयिक जिस समय वेदना करते हैं उस समय निर्जरा नहीं करते, जिस समय निर्जरा करते हैं उस समय वेदना नहीं करते अन्य समय में वेदना करते हैं, अन्य समय में निर्जरा करते हैं। वेदना का समय अन्य है, निर्जरा का समय अन्य है। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् जो निर्जरा का समय है वह वेदना का समय नहीं है। ९२. इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। शाश्वत-अशाश्वत-पद ९३. भन्ते! क्या नैरयिक शाश्वत हैं? अशाश्वत हैं? गौतम! स्यात् (किसी अपेक्षा से) शाश्वत हैं, स्यात् अशाश्वत हैं। ९४. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-नैरयिक स्यात् शाश्वत हैं, स्यात् अशाश्वत हैं? गौतम! अव्युच्छित्ति-नय की अपेक्षा शाश्वत हैं, व्युच्छित्ति-नय की अपेक्षा अशाश्वत हैं, इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् नैरयिक स्यात् शाश्वत हैं, स्यात् अशाश्वत हैं। ९५. इसी प्रकार यावत् वैमानिक यावत् स्यात् अशाश्वत हैं। ९६. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। चौथा उद्देशक संसारस्थजोव-पदम् ९७. राजगृह नगर में महावीर का समवसरण यावत् गौतम ने कहा-भन्ते! संसार-समापन्नक जीव कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! संसार-समापन्नक जीव छह प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकायिक। इस प्रकार यह प्रकरण जीवाजीवाभिगम (३/१८३-२११) की भांति वक्तव्य है यावत् एक जीव एक समय में एक क्रिया करता है, जैसे-सम्यक्त्व-क्रिया अथवा मिथ्यात्व-क्रिया। ९८. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। २३६
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy