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________________ श. ६ : उ. ४ : सू. ६३ भगवती सूत्र वाले जीवों के जीव आदि पदा (नारक,तेजो, वायु, विकलेन्द्रिय और सिद्ध को वर्ज कर) में तीन भंग होते हैं। केवल इतना विशेष है-पृथ्वीकायिक, अपकायिक और वनस्पतिकायिक जीवों में छह भंग होते हैं। पद्म-लेश्या और शुक्ल-लेश्या वाले जीवों के जीव आदि पदों (पंचेन्द्रिय-तिर्यक्-, मनुष्य- और वैमानिक-पदों) में तीन भंग होते हैं। लेश्या-रहित जीव और सिद्धों में तीन भंग होते हैं। मनुष्य में छह भंग होते हैं। सम्यग-दृष्टि जीवों के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। विकलेन्द्रिय जीवों में छह भंग होते हैं। मिथ्या-दृष्टि जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। सम्यक्-मिथ्या-दृष्टि जीवों में छह भंग होते हैं। संयत जीवों के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। असंयत जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। संयतासंयत जीवों के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत, जीव और सिद्धों में तीन भंग होते हैं। सकषायी-जीवों के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। एकेन्द्रिय-जीवों में कोई भंग नहीं होता। क्रोध-कषायी-जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। देवों में छह भंग होते हैं। मान-कषायी- और माया-कषायी-जीवों में जीव तथा एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। नरयिकों में और देवों में छह भंग होते हैं। लोभ-कषायी-जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। नैरयिकों में छह भंग होते हैं। अकषायी-जीव और मनुष्यों तथा सिद्धों में तीन भंग होते हैं। औधिकज्ञानी, आभिनिबोधिक-ज्ञानी और श्रुत-ज्ञानी के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। विकलेन्द्रिय-जीवों में छह भंग होते हैं। अवधिज्ञानी, मनः-पर्यवज्ञानी और केवल-ज्ञानी के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। औधिक अज्ञानी, मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। विभंग-ज्ञानी के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। सयोगी औधिक जीव की भांति वक्तव्य है। मन-योगी, वचन-योगी, काय-योगी के जीव आदि पदों के तीन भंग होते हैं। केवल इतना विशेष है-काय-योगी एकेन्द्रिय जीवों में कोई भंग नहीं होता। अयोगी लेश्या-रहित जीवों की भांति वक्तव्य है। साकारोपयोग वाले और अनाकारोपयोग वाले जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। सवेदक सकषाय-जीवों की भांति वक्तव्य है। स्त्री-वेदक-, पुरुष-वेदक- और नपुंसक-वेदक-जीवों के जीव आदि पदों में तीन भंग होते हैं। केवल इतना विशेष है: नपुंसक-वेदक-एकेन्द्रिय-जीवों में कोई भंग नहीं होता। अवेदक अकषायी की भांति वक्तव्य है। सशरीर औधिक जीव की भांति वक्तव्य है। औदारिक- और वैक्रिय-शरीरी-जीवों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। आहारक-शरीरी-जीव और मनुष्य में छह भंग होते हैं। तैजस- और कर्मक-शरीरी औधिक जीव की भांति वक्तव्य है। अशरीर-जीव और सिद्धों में तीन भंग होते हैं। आहार-पर्याप्ति, शरीर-पर्याप्ति, इन्द्रिय-पर्याप्ति और आनापान-पर्याप्ति वाले जीवों में जीव तथा एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भग होते हैं। भाषा- और मन-पर्याप्ति वाले जीव संज्ञी-जीव २०२
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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