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________________ भगवती सूत्र चौथा उद्देशक श. ६ : उ. ४ : सू. ५४-६३ काल की अपेक्षा सप्रदेश - अप्रदेश - पद ५४. भन्ते! जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश है ? अप्रदेश है ? गौतम ! नियमतः सप्रदेश है । ५५. भन्ते ! नैरयिक- जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश है ? अप्रदेश है ? गौतम ! स्यात् सप्रदेश है, स्यात् अप्रदेश है । ५६. इसी प्रकार यावत् सिद्ध की वक्तव्यता । ५७. भन्ते ! जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश हैं ? अप्रदेश हैं ? गौतम ! नियमतः सप्रदेश हैं । ५८. भन्ते! नैरयिक-जीव काल की अपेक्षा क्या सप्रदेश हैं ? अप्रदेश हैं ? गौतम ! १. सभी जीव सप्रदेश हैं २. अथवा अनेक जीव सप्रदेश हैं और एक जीव अप्रदेश है ३. अथवा अनेक जीव सप्रदेश हैं और अनेक जीव अप्रदेश हैं । ५९. इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार देवों की वक्तव्यता । ६०. भन्ते! पृथ्वीकायिक-जीव क्या सप्रदेश हैं ? अप्रदेश हैं ? गौतम ! सप्रदेश भी हैं, अप्रदेश भी हैं। ६१. इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों की वक्तव्यता । ६२. शेष सिद्धों तक सभी जीव नैरयिक- जीवों की भांति वक्तव्य हैं। ६३. आहारक जीवों में जीव- पद और एकेन्द्रिय-पद को छोड़कर तीन भंग होते हैं। अनाहारक जीवों में बहुवचनान्त जीव-पद और एकेन्द्रिय-पद को छोड़कर छह भंग इस प्रकार हैं - १. अनेक जीव सप्रदेश हैं २. अनेक जीव अप्रदेश हैं ३. अथवा एक जीव सप्रदेश हैं, एक जीव अप्रदेश है । ४. अथवा एक जीव सप्रदेश है, अनेक जीव अप्रदेश हैं । ५. अथवा अनेक जीव सप्रदेश है, एक जीव अप्रदेश है । ६. अथवा अनेक जीव सप्रदेश हैं, अनेक जीव अप्रदेश है । सिद्ध जीवों में तीन भंग होते हैं। भवसिद्धिक- और अभवसिद्धिक-जीव औधिक जीवों की भांति वक्तव्य हैं। नोभवसिद्धिक- नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्ध के तीन-तीन भंग होते हैं । जीव आदि पदों (जीव तथा नैरयिक आदि दण्डकों) में संज्ञी - जीवों के तीन भंग होते हैं । असंज्ञी - जीवों में एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग होते हैं। नैरयिक, देव और मनुष्यों में छह भंग होते हैं। नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी जीवों में जीव, मनुष्य और सिद्ध के तीन-तीन भंग होते हैं । लेश्या - युक्त जीवों की भंग-व्यवस्था औधिक जीव की भांति वक्तव्य है । कृष्ण-लेश्या वाले नील- लेश्या वाले और कापोत- लेश्या वाले जीवों की भंग-व्यवस्था आहारक की भांति वक्तव्य है। केवल इतना विशेष है-जिन दण्डकों में ये लेश्याएं उपलब्ध हैं । तैजस- लेश्या २०१
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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