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________________ श. ५ : उ. ९ : सू. २३८-२४९ भगवती सूत्र २३८. यह किस अपेक्षा से? गौतम! दिन में शुभ-पुद्गल होते हैं और पुद्गलों का परिणमन शुभ होता है। रात्रि में अशुभपुद्गल होते हैं और पुद्गलों का परिणमन अशुभ होता है यह इस अपेक्षा से। २३९. भन्ते ! नैरयिक-जीवों के क्या उद्द्योत होता है? अथवा अन्धकार? गौतम! नैरयिक-जीवों के उद्द्योत नहीं होता, अन्धकार होता है। १४०. यह किस अपेक्षा से? गौतम! नैरयिक-जीवों के अशुभ-पुद्गल होते हैं और पुद्गलों का परिणमन अशुभ होता है-यह इस अपेक्षा से। २४१. भन्ते! असुरकुमार-देवों के क्या उद्द्योत होता है? अथवा अन्धकार ? गौतम! असुरकुमार-देवों के उद्द्योत होता है, अन्धकार नहीं होता। २४२. यह किस अपेक्षा से? गौतम! असुरकुमार-देवों के शुभ-पुद्गल होते हैं, और पुद्गलों का परिणमन शुभ होता है-यह इस अपेक्षा से। यावत् स्तनितकुमार-देवों तक यही वक्तव्यता है। २४३. पृथ्वीकायिक यावत् त्रीन्द्रिय जीवों की वक्तव्यता नैरयिकों की भांति ज्ञातव्य है। २४४. भन्ते! चतुरिन्द्रिय जीवों के क्या उद्द्योत होता है? अथवा अन्धकार? गौतम! उद्द्योत भी होता है, अन्धकार भी होता है। २४५. यह किस अपेक्षा से? गौतम! चतुरिन्द्रिय जीवों के शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के पुद्गल होते हैं और पुद्गलों का परिणमन शुभ और अशुभ दोनों प्रकार का होता है-यह इस अपेक्षा से। २४६. इसी प्रकार यावत् मनुष्यों की व्यक्तव्यता। २४७. वानमन्तर-, ज्योतिष्क- और वैमानिक-देवों की वक्तव्यता असुरकुमारों की भांति ज्ञातव्य है। मनुष्य-क्षेत्र में समयादि-पद २४८. भन्ते! नैरयिक मनुष्य-लोक (समयक्षेत्र) के बाहर स्थित है, इसलिए उनके विषय में क्या ऐसा प्रज्ञापन हो सकता है, जैसे-समय, आवलिका यावत् अवसर्पिणी अथवा उत्सर्पिणी होते हैं? यह अर्थ संगत नहीं है। २४९. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है नैरयिक मनुष्य-लोक के बाहर स्थित है, इसलिए उनके विषय में ऐसा प्रज्ञापन नहीं हो सकता, जैसे-समय, आवलिका यावत् अवसर्पिणी अथवा उत्सर्पिणी होते हैं? गौतम! समय आदि का मान और प्रमाण मनुष्य-लोक में होता है। मनुष्य-लोक में ही उनका इस प्रकार प्रज्ञापन हो सकता है, जैसे-समय यावत् उत्सर्पिणी होते हैं। इस अपेक्षा से यावत् १८८
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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