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________________ भगवती सूत्र श. ५ : उ. ८,९ : सू. २३२-२३७ २३२. भन्ते। सिद्ध कितने काल तक उपचय-सहित होते हैं? गौतम! जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः आठ समय तक। २३३. भन्ते! सिद्ध कितने समय तक उपचय-अपचय से रहित होते हैं? जघन्यतः एक समय, उत्कर्षतः छह मास। २३४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। नवां उद्देशक 'यह कौन राजगृह' का पद २३५. उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार कहा-भन्ते! यह कौन राजगृह नगर कहलाता है? क्या पृथ्वी राजगृह नगर कहलाती है? क्या जलात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या अग्नि, वायु और वनस्पत्यात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या टंक, कूट, शैल, शिखरी और प्राग्भारात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या जल, स्थल, बिल, गुफा और लयनात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या उज्झर-, निर्झर-, तलैया-, जल का छोटा गड्डे- और जल-प्रणाली-रूप नगर राजगृह कहलाता है? क्या कुआं-, तालाब-, हृद-, नदी-, बावड़ी-, पुष्करिणी-, नहर-, वक्राकार नहर-, सर-, सरपंक्ति-, सरसरपंक्ति- और बिलपंक्ति-रूप नगर राजगृह कहलाता है? क्या आराम-, उद्यान-, कानन-, वन-, वनषण्ड- और वनराजि-रूप नगर राजगृह कहलाता है? क्या देवल, सभा, प्रपा, स्तूप, खाई और परिखात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार और गोपुरात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या प्रासाद-, घर-, शरण-, लयन- और आपण-रूप नगर राजगृह कहलाता है? क्या दुराहे, तिराहे, चौराहे, चौक, चौहट्टे, महापथ और पथात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या शकट-, रथ-, यान-, युग्य-, डोली-, बग्घी-, शिबिका- और स्यन्दमानिका-रूप नगर राजगृह कहलाता है? क्या तवा-, लोह-, कटाह-, करछी-रूप नगर राजगृह कहलाता है? क्या भावनात्मक नगर राजगृह कहलाता है? क्या देव-, देवी-, मनुष्य-, मानुषी-, नर-तिर्यञ्च- और स्त्री-तिर्यञ्च-रूप नगर राजगृह कहलाता है? क्या आसन-, शयन-, स्तम्भ-, भाण्ड-, -सचित्त-, अचित्त- और मिश्र-द्रव्य-रूप नगर राजगृह कहलाता है? गौतम! पृथ्वी भी राजगृह नगर कहलाती है यावत् सचित्त-, अचित्त-, मिश्र-द्रव्यों को भी राजगृह नगर कहा जाता है। २३६. यह किस अपेक्षा से? गौतम! जीवाजीवात्मक पृथ्वी राजगृह नगर कहलाती है, यावत् जीवाजीवात्मक सचित्त-, अचित्त-, मिश्र-द्रव्यों को राजगृह नगर कहा जाता है। यह इस अपेक्षा से। उद्योत-अन्धकार-पद २३७. भन्ते! क्या दिन में उद्योत और रात्रि में अन्धकार है? हां, गौतम ! दिन में उद्द्योत और रात्रि में अन्धकार है। १८७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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