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________________ श. ५ : उ. ८ : सू. २०५-२१२ भगवती सूत्र जैसे क्षेत्र की दृष्टि से अ-प्रदेश की वक्व्यता है, वैसे ही काल और भाव की दृष्टि से भी अप्रदेश की वक्तव्यता है। जो पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा से स-प्रदेश है, वह क्षेत्र की अपेक्षा से स्यात् स-प्रदेश है, स्यात् अ-प्रदेश है। इसी प्रकार काल और भाव की अपेक्षा से भी वह स्यात् स-प्रदेश है, स्यात् अ-प्रदेश है। जो पुद्गल क्षेत्र की अपेक्षा से स-प्रदेश है, वह द्रव्य की अपेक्षा से नियमतः स-प्रदेश है। काल की अपेक्षा से भजना है-वह स्यात् स-प्रदेश है, स्यात् अ-प्रदेश है। भाव की अपेक्षा से भजना है-स्यात् स-प्रदेश है, स्यात् अ-प्रदेश है। जैसे द्रव्य की दृष्टि से स-प्रदेश की वक्तव्यता है, वैसे ही काल और भाव की दृष्टि से सप्रदेश की वक्तव्यता है। २०६. भन्ते! इन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से स-प्रदेश और अप्रदेश पुद्गलों में कौन किससे कम हैं, अधिक हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं? नारदपुत्र! भाव की अपेक्षा से अ-प्रदेश पुद्गल सबसे अल्प है, काल की अपेक्षा से अ-प्रदेश पुद्गल उनसे असंख्येय-गुना अधिक हैं, द्रव्य की अपेक्षा से अ-प्रदेश पुद्गल उनसे असंख्येय-गुना अधिक हैं, क्षेत्र की अपेक्षा से अ-प्रदेश पुद्गल उनसे असंख्येय-गुना अधिक हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से स-प्रदेश पुद्गल उनसे असंख्येय-गुना अधिक हैं, द्रव्य की अपेक्षा से स-प्रदेश पुद्गल उनसे विशेषाधिक हैं, काल की अपेक्षा से स-प्रदेश पुद्गल उनसे विशेषाधिक हैं, भाव की अपेक्षा से स-प्रदेश पुद्गल उनसे विशेषाधिक हैं। २०७. अनगार नारदपुत्र अनगार निर्ग्रन्थीपुत्र को वन्दन-नमस्कार करता है, वन्दन-नमस्कार कर इस अर्थ-बोध को देने में हुई परिश्रान्ति के लिए सम्यक् विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना करता है। क्षमा-याचना कर संयम और तप से अपने आपको भावित करता हुआ विहरण कर रहा है। जीवों की वृद्धि-हानि-अवस्थिति-पद २०८. भन्ते! इस सम्बोधन से सम्बोधित कर भगवान गौतम भगवान महावीर को वन्दननमस्कार करते हैं, वन्दन-नमस्कार कर उन्होंने इस प्रकार कहा-भन्ते! क्या जीव बढ़ते हैं? घटते हैं? अथवा अवस्थित हैं? गौतम! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, अवस्थित हैं। २०९. भन्ते! क्या नैरयिक-जीव बढ़ते हैं? घटते हैं? अथवा अवस्थित हैं? गौतम! नैरयिक जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी हैं। २१०. जैसी वक्तव्यता नैरयिक जीवों की है वैसी ही वक्तव्यता यावत् वैमानिक-देवों तक की २११. भन्ते! सिद्धों की पृच्छा। गौतम! सिद्ध जीव बढ़ते भी हैं, घटते नहीं हैं, अवस्थित, भी हैं। २१२. भन्ते! जीव कितने काल तक अवस्थित रहते हैं? १८४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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