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________________ श. ५ : उ. ६ : सू. १२७-१३१ भगवती सूत्र गौतम! प्राणों का अतिपात न कर, झूठ न बोल कर, तथारूप श्रमण अथवा माहन को वन्दन-नमस्कार कर यावत् उसकी पर्युपासना कर उसे किसी प्रकार के मनोज्ञ एवं प्रीतिकर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से प्रतिलाभित कर इस प्रकार जीव शुभ-दीर्घ-आयुष्य वाले कर्म का बन्ध करते हैं। क्रय-विक्रय-क्रिया-पद १२८. भन्ते! एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है। उस समय कोई व्यक्ति भाण्ड का अपहरण कर ले, उस अपहत भाण्ड की गवेषणा करते हुए गृहपति के क्या आरंभिक क्रिया होती है? पारिग्रहिकी क्रिया होती है? माया-प्रत्यया-क्रिया होती है? अप्रत्याख्यान-क्रिया होती है? अथवा मिथ्या-दर्शन-प्रत्यया क्रिया होती है? गौतम! उसके आरंभिकी क्रिया होती है, पारिग्रहिकी क्रिया होती है, माया-प्रत्यया-क्रिया होती है, अप्रत्याख्यान-क्रिया होती है और मिथ्या-दर्शन-क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। जब वह अपहत भाण्ड मिल जाता है, तब वे सब क्रियाएं पतली हो जाती हैं। १२९. भन्ते! एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है, ग्राहक भाण्ड को वचनबद्ध होकर स्वीकार कर लेता है, किन्तु अभी तक उसने भाण्ड को ग्रहण नहीं किया है। भन्ते! उस भाण्ड से गृहपति के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शनक्रिया होती है? उस भाण्ड से ग्राहक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शन-क्रिया होती गौतम! उस भाण्ड से गृहपति के आरम्भिकी क्रिया होती है यावत् अप्रत्याख्यान-क्रिया होती है। मिथ्या-दर्शन-क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती है। ग्राहक के ये सब क्रियाएं पतली हो जाती हैं। १३०. भन्ते! एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है, ग्राहक भाण्ड को वचनबद्ध होकर स्वीकार कर लेता है और उसे ग्रहण कर लेता है। भन्ते! उस भाण्ड से ग्राहक के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शनक्रिया होती है? उस भाण्ड से गृहपति के क्या आरम्भिकी क्रिया होती है? यावत् मिथ्या-दर्शन-क्रिया होती है? गौतम! उस भाण्ड से ग्राहक के प्रथम चार क्रियाएं होती हैं। मिथ्यादर्शनक्रिया की भजना है-कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। गृहपति के वे सब क्रियाएं पतली हो जाती हैं। १३१. भन्ते! एक गृहपति भाण्ड बेच रहा है ग्राहक भाण्ड को वचनबद्ध होकर स्वीकार कर लेता है, पर गृहपति ने धन ग्रहण नहीं किया है। १७०
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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