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भगवती सूत्र
श. ५ : उ. ५,६ : सू. ११९-१२७ ११९. भन्ते! नैरयिक एवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं अथवा अनेवंभूत वेदना का अनुभव
करते हैं? गौतम! नैरयिक एवंभूत वेदना का भी अनुभव करते हैं और अनेवंभूत वेदना का भी अनुभव करते हैं। १२०. भन्ते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- नैरयिक एवंभूत वेदना का भी अनुभव करते हैं और अनेवंभूत वेदना का भी अनुभव करते हैं? गौतम! जो नैरयिक जैसे कर्म किया, वैसे ही वेदना का वेदन करते हैं, वे एवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं। जो नैरयिक जैसे कर्म किया वैसे ही वेदना का वेदन नहीं करते, वे अनेवंभूत वेदना का अनुभव करते हैं। इस अपेक्षा से कहा जा रहा है। १२१. इसी प्रकार वैमानिक तक सभी दंडकों में दोनों प्रकार की वेदना वक्तव्य है। कुलकर आदि-पद १२२. संसार-मण्डल ज्ञातव्य है। (द्र. समवाओ, प्रकीर्णक समवाय, सूत्र २१८-२४७) १२३. भन्ते! वह ऐसा ही है, भन्ते! वह ऐसा ही है, इस प्रकार कह भगवान् गौतम यावत् विहार करते हैं।
छठा उद्देशक अल्पायु-दीर्घायु-पद १२४. भन्ते! जीव अल्प-आयुष्य वाले कर्म का बन्ध कैसे करते हैं? गौतम! प्राणों का अतिपात कर, झूठ बोल कर, तथारूप श्रमण अथवा माहन को अप्रासुक और अनेषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से प्रतिलाभित कर इस प्रकार जीव अल्प आयुष्य वाले कर्म का बन्ध करते हैं। १२५. भन्ते! दीर्घ-आयुष्य वाले कर्म का बन्ध कैसे करते हैं? गौतम! प्राणों को अतिपात न कर, झूठ न बोल कर, तथारूप श्रमण अथवा माहन को प्रासुक
और एषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से प्रतिलाभित कर इस प्रकार जीव दीर्घ-आयुष्य वाले कर्म का बन्ध करते हैं। अशुभ-शुभ-दीर्घायु-पद १२६. भन्ते! जीव अशुभ-दीर्घ-आयुष्य वाले कर्म का बन्ध कैसे करते हैं?
गौतम! प्राणों का अतिपात कर, झूठ बोल कर, तथारूप श्रमण अथवा माहन की अवहेलना, निन्दा, तिरस्कार, गर्दा और अवमानना कर तथा किसी प्रकार के अमनोज्ञ एवं अप्रीतिकर, अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से प्रतिलाभित कर जीव-इस प्रकार अशुभ-दीर्घ-आयुष्य वाले कर्म का बन्ध करते हैं। १२७. भन्ते! जीव शुभ-दीर्घ-आयुष्य वाले कर्म का बन्धन कैसे करते हैं?
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