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________________ श. ३ : उ. ७ : सू. २६६-२७१ भगवती सूत्र वैश्रवण-पद २६६. भन्ते! देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वैश्रवण का वल्गु नामक महाविमान कहां प्रज्ञप्त है? गौतम! उस सौधर्मावतंसक महाविमान के उत्तर भाग में वैश्रमण का वल्गु नाम का महाविमान है। इसके विमान, राजधानी और प्रसादावतंसक तक की वक्तव्यता सोम की भांति ज्ञातव्य है। २६७. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वैश्रवण की आज्ञा, उपपात, वचन और निर्देश में रहने वाले देव ये हैं वैश्रवणकायिक, वैश्रवणदेवकायिक, सुपर्णकुमार, सुपर्णकुमारियां, द्वीपकुमार, द्वीपकुमारियां, दिक्कुमार, दिक्कुमारियां, वानमन्तर, वानमन्तरियां। इस प्रकार के जितने अन्य देव हैं, वे सब देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वैश्रवण के प्रति भक्ति रखते हैं, उसके पक्ष में रहते हैं, उसके वशवर्ती रहते हैं। तथा उसकी आज्ञा, उपपात, वचन और निर्देश में अवस्थित हैं। २६८. जम्बूद्वीप द्वीप में मेरुपर्वत के दक्षिण भाग में जो ये स्थितियां उत्पन्न होती हैं लोहे की खान, रांगे की खान, ताम्बे की खान, सीसे की खान, चांदी की खान, सोने की खान, रत्नों की खान, वज्र की खान, वसधारा, हिरण्यवर्षा, सवर्णवर्षा, रत्नवर्षा, वज्रवर्षा, आभरणवर्षा, पत्रवर्षा, पुष्पवर्षा, फलवर्षा, बीजवर्षा, माल्यवर्षा, वर्णवर्षा, चूर्णवर्षा, गन्धवर्षा, वस्त्रवर्षा, हिरण्यवृष्टि, सुवर्णवृष्टि, रत्नवृष्टि, वज्रवृष्टि, आभरणवृष्टि, पत्रवृष्टि, पुष्पवृष्टि, फलवृष्टि, बीजवृष्टि, माल्यवृष्टि, वर्णवृष्टि, चूर्णवृष्टि, गन्धवृष्टि, वस्त्रवृष्टि, भाजनवृष्टि, क्षीरवृष्टि, सुकाल, दुष्काल, अल्पार्घ्य, महार्घ्य, सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, क्रय-विक्रय, सन्निधि, संनिचय, निधि, निधान हैं-चिरपुराण, अल्पस्वामित्व वाले हों, उनमें धन का न्यास करने वाले कम रहे हों, उन तक पहुंचने के मार्ग कम हों, वहां धन का न्यास करने वालों का गोत्रगृह कम रहा हो, उनका स्वामित्व उच्छिन्न हो गया हो, उनमें धन का न्यास करने वाले उच्छिन्न हो गए हों, (उन तक जाने वाले मार्ग उच्छिन्न हो गए हों) वहां धन का न्यास करने वालों के गोत्र-गृह उच्छिन्न हो गए हों। वहां जो दुराहे, तिराहे, चौराहे, चोक चारों ओर प्रवेशद्वार वाले स्थान, राजपथ और वीथियों में, नगर के जलनिर्गमन-मार्गों में, श्मशानगृहों, गिरिगृहों, कन्दरागृहों, शांतिगृहों, शैलगृहों, उपस्थानगृहों और भवनगृहों में जो निधान निक्षिप्त हैं वे देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वैश्रवण और वैश्रवणकायिक देवों से अज्ञात, अदृष्ट, अश्रुत, अस्मृत और अविज्ञात नहीं होती। २६९. ये निम्नांकि देव देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वैश्रवण के पुत्ररूप में पहचाने जाते हैं, जैसे–पूर्णभद्र, माणिभद्र, शालिभद्र, सुमनभद्र, चक्ररक्ष, पूर्णरक्ष, सव्यान, सर्वयश, सर्वकाम, समृद्ध, अमोह और असंग। २७०. देवेन्द्र देवराज शक्र के लोकपाल महाराज वैश्रवण की स्थिति दो पल्योपम की प्रज्ञप्त है। उनके पुत्ररूप में पहचाने जाने वाले देवों की स्थिति एक पल्योपम की प्रज्ञप्त है। लोकपाल वैश्रवण ऐसी महान् ऋद्धिवाला यावत् महान् सामर्थ्यवाला है। २७१. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। . १४४
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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