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________________ (XVIII) में कुछ समय लगेगा। यदि आपकी अनुज्ञा हो तो भगवती सूत्र के केवल हिन्दी अनुवाद का संस्करण शीघ्र तैयार हो सकता है। उन्होंने कृपा कर के इसके लिए अनुज्ञा प्रदान कर दी । तदनुसार यह ग्रन्थ पाठकों की ज्ञान-पिपासा को शान्त करने की दृष्टि से तैयार किया गया है । प्रस्तुत ग्रन्थ भगवती सूत्र ( व्याख्याप्रज्ञप्ति) के केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में संरचित है। इस ग्रंथ में भगवती - सूत्र (सम्पूर्ण) के शतक १-४१ का केवल हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। इसके मूल पाठ का आधार है- अंगसुत्ताणि भाग - २ जो भगवई (विआहपण्णत्ति) के समीक्षात्मक संपादन के साथ प्रकाशित संस्करण के रूप में है ।' यह संस्करण अनेक प्राचीन पाण्डुलिपियों के समीक्षात्मक अनुसंधान पर आधारित है । प्रस्तुत संपूर्ण भगवती सूत्र दो खण्डों में है प्रथम खण्ड में शतक १ - ११ द्वितीय खण्ड में शतक १२-४१ आचार्यश्री महाश्रमण के निदेशन में वर्तमान संस्करण के सम्पादन का कार्य मैंने किया । हिन्दी अनुवाद, जो भाष्य वाले संस्करण में उपलब्ध है, उसीको अपेक्षा अनुसार सम्पादित कर वर्तमान संस्करण के रूप में तैयार किया गया है। सम्पादन करते समय कुछ बातों पर विशेष ध्यान दिया गया है १. समास-युक्त शब्दों का पदच्छेद कर बीच में (हाइफन - ) लगा दिए हैं। जहां लम्बे समास हैं, उनमें अनेक शब्दों का समास होने से प्रत्येक शब्द के साथ हाइफन का चिह्न लगा कर फिर कौमा (,) का चिह्न दिया है तथा अन्त में जो शब्द हैं उनके बीच (हाइफन - ) चिह्न लगा दिया है। इससे अर्थबोध में स्पष्टता होती है । उदाहरणार्थ "गौतम ! जीव- द्रव्य अजीव द्रव्यों का पर्यादान (ग्रहण) करते हैं, पर्यादान कर उन्हें औदारिक, वैक्रिय, आहारक- तेजस्-, और कार्मण- (शरीर ), श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय, मन-योग, वचन-योग, काय - योग और आनापान के रूप में निष्पन्न करते हैं । " - भ. २५ / १८ (पृष्ठ ७८४) ' २. कहीं-कहीं पारिभाषिक शब्दों के साथ (कोष्ठक चिह्न) में उनके सरल शब्दार्थ भी दे दिए हैं। उदाहरणार्थ- 'पृथक्त्व' जिसका अर्थ है - दो से नौ । जैसे- 'पृथक्त्व वर्ष' की जगह 'पृथक्त्व (दो से नौ) - वर्ष' इस प्रकार स्पष्ट कर दिया है। ३. जहां कहीं आगमों के नामोल्लेख हैं वहां उन्हें 'बोल्ड' कर दिया है । भारती लाडनूं, सन् १९७४ (प्रथम संस्करण), १९८७ (द्वितीय संस्करण) । १. अंगसुत्ताणि भाग- २, वाचना- प्रमुख आचार्य तुलसी, सम्पादक मुनि नथमल ( आचार्य महाप्रज्ञ), प्रकाशक जैन विश्व
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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