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________________ भगवती सूत्र श. २ : उ. १० : सू. १४९-१५३ गौतम! वह संख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करती, असंख्यातवें भाग का स्पर्श करती है, संख्येय भागों का स्पर्श नहीं करती, असंख्येय भागों का स्पर्श नहीं करती और सम्पूर्ण का स्पर्श नहीं करती। १५० भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी का घनोदधि क्या धर्मास्तिकाय के संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है? असंख्यातवें भाग का स्पर्श करता है? संख्येय भागों का स्पर्श करता है? असंख्येय भागों का स्पर्श करता है अथवा सम्पूर्ण का स्पर्श करता है। जैसे रत्नप्रभा पृथ्वी स्पर्श करती है, वैसे ही घनोदधि, घनवात और तनुवात भी स्पर्श करते हैं। १५१. भन्ते! इस रत्नप्रभा-पृथ्वी का अवकाशान्तर क्या धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग का स्पर्श करता है? असंख्यातवें भाग का स्पर्श करता है? संख्येय भागों का स्पर्श करता है? असंख्येय भागों का स्पर्श करता है? अथवा सम्पूर्ण का स्पर्श करता है? गौतम! वह संख्यातवें भाग का स्पर्श करता है, असंख्यातवें भाग का स्पर्श नहीं करता, संख्येय भागों का स्पर्श नहीं करता, असंख्येय भागों का स्पर्श नहीं करता और सम्पूर्ण का स्पर्श नहीं करता। इसी प्रकार सभी अवकाशान्तर वक्तव्य हैं। १५२. जैसे रत्नप्रभा-पृथ्वी की वक्तव्यता कही गई है वैसे ही यावत् अधःसप्तमी (सातवीं पृथ्वी) की वक्तव्यता ज्ञातव्य है। इसी प्रकार सौधर्म-कल्प यावत् ईषत्-प्राग्भारा पृथ्वी ये सभी धर्मास्तिकाय के असंख्यात वें भाग का स्पर्श करते हैं। शेष विकल्पों का प्रतिषेध कर देना चाहिए। १५३. इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का और इसी प्रकार लोकाकाश का स्पर्श करते हैं। पृथ्वी, घनोदधि, घनवात, तनुवात, बारह कल्प, नौ ग्रैवेयक, पांच अनुत्तरविमान और सिद्धशिला-इन में पृथ्वी, बारह कल्प, नौ ग्रैवेयक और पांच अनुत्तरविमान के अवकाशान्तर धर्मास्तिकाय आदि के संख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं और शेष सब (पृथ्वी से सिद्धशिला तक) उनके असंख्यातवें भाग का स्पर्श करते हैं। ९७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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