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________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ७,८ : सू. ३५७-३६१ होते-उपशांत होते हैं, तो वह श्रेष्ठ रूप, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला होता है, इष्ट, कान्त, प्रिय, शुभ, मनोज्ञ और मनोहर होता है; अहीन, अदीन, इष्ट, कांत, प्रिय, शुभ, मनोज्ञ और मनोहर स्वरवाला तथा आदेय वचन वाला होता है। ३५८. भंते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। आठवां उद्देशक बाल का आयुष्य-पद ३५९. भन्ते! एकान्त बाल मनुष्य क्या नरक का आयुष्य बांधता है? तिर्यञ्च का आयुष्य बांधता है? मनुष्य का आयुष्य बांधता है? देव का आयुष्य बांधता है? नरक का आयुष्य बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है? तिर्यञ्च का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है? मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है? देव का आयुष्य बांधकर देवलोकों में उपपन्न होता है? गौतम! एकान्त बाल मनुष्य नरक का आयुष्य भी बांधता है, तिर्यंच का आयुष्य भी बांधता है, मनुष्य का आयुष्य भी बांधता है, देव का आयुष्य भी बांधता है। वह नरक का आयुष्य बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है, तिर्यञ्च का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है, मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है और देव का आयुष्य बांधकर देवलोकों में उपपन्न होता है। पण्डित का आयुष्य-पद ३६०. भन्ते! एकान्त पण्डित मनुष्य क्या नरक का आयुष्य बांधता है? तिर्यञ्च का आयुष्य बांधता है? मनुष्य का आयुष्य बांधता है? देव का आयुष्य बांधता है? वह नरक का आयुष्य बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है? तिर्चञ्च का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है? मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है? देव का आयुष्य बांधकर देवलोकों में उपपन्न होता है? गौतम! एकान्त पण्डित मनुष्य कदाचित् आयुष्य बांधता है, कदाचित् नहीं बांधता। यदि वह आयुष्य बांधता है, तो न नरक का आयुष्य बांधता है, न तिर्यञ्च का आयुष्य बांधता है, न मनुष्य का आयुष्य बांधता है, वह केवल देव का आयुष्य बांधता है। वह न नरक का आयुष्य बांधकर नैरयिकों में उपपन्न होता है, न तिर्यञ्च का आयुष्य बांधकर तिर्यञ्चों में उपपन्न होता है, न मनुष्य का आयुष्य बांधकर मनुष्यों में उपपन्न होता है, वह केवल देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है। ३६१. यह किसी अपेक्षा से कहा जा रहा है-एकान्त पण्डित मनुष्य यावत् देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है? गौतम! एकांत पंडित मनुष्य की केवल दो ही गतियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अंतक्रिया और कल्पोपपत्तिका (वैमानिक देवों में उपपत्ति)। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् देव का आयुष्य बांधकर देवों में उपपन्न होता है। ४७
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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