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________________ भगवती सूत्र श. १: उ. ६,७ : सू. ३१६-३२४ वैसे ही सूक्ष्म जल भी बहुत लम्बे समय तक रहता है? गौतम ! यह अर्थ संगत नहीं है। वह शीघ्र ही विध्वंस को प्राप्त हो जाता है। ३१७. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। सातवां उद्देशक देश-सर्व-पद ३१८. भन्ते! नैरयिकों में उपपद्यमान (उपपन्न होता हुआ) नैयिक क्या-१. देश के द्वारा देश में उपपन्न होता है? २. देश के द्वारा सर्व में उपपन्न होता है? ३. सर्व के द्वारा देश में उपपन्न होता है? ४. सर्व के द्वारा सर्व में उपपन्न होता है? गौतम! वह १. देश के द्वारा देश में उपपन्न नहीं होता है। २. देश के द्वारा सर्व में उपपन्न नहीं होता है। ३. सर्व के द्वारा देश में उपपन्न नहीं होता। ४. सर्व के द्वारा सर्व में उपपन्न होता है। ३१९. नैरयिक की भांति ही वैमानिक तक का उपपाद ज्ञातव्य है। ३२०. भन्ते! नैरयिकों में उपपद्यमान नैरयिक क्या-१. देश के द्वारा देश का आहरण करता है? २. देश के द्वारा सर्व का आहरण करता है? ३. सर्व के द्वारा देश का आहरण करता है? ४. सर्व के द्वारा सर्व का आहरण करता है? गौतम! वह १. देश के द्वारा देश का आहरण नहीं करता। २. देश के द्वारा सर्व का आहरण नहीं करता। ३. सर्व के द्वारा देश का आहरण करता है। ४. अथवा सर्व के द्वारा सर्व का आहरण करता है। ३२१. इसी प्रकार वैमानिक तक ज्ञातव्य है। ३२२. भन्ते! नैरयिकों से उद्वर्तन करता हुआ नैरयिक क्या-१. देश के द्वारा देश से उद्वर्तन करता है? २. देश के द्वारा सर्व से उद्वर्तन करता है? ३. सर्व के द्वारा देश से उद्वर्तन करता है? ४. सर्व के द्वारा सर्व से उद्वर्तन करता है? गौतम! वह १. देश के द्वारा देश से उद्वर्तन नहीं करता। २. देश के द्वारा सर्व से उद्वर्तन नहीं करता। ३. सर्व के द्वारा देश से उद्वर्तन नहीं करता है। ४. सर्व के द्वारा सर्व से उद्वर्तन करता है। ३२३. इसी प्रकार वैमानिक तक ज्ञातव्य है। ३२४. भन्ते! नैरयिकों से उद्वर्तन करता हुआ नैरयिक क्या-१. देश के द्वारा देश का आहरण करता है? २. देश के द्वारा सर्व का आहरण करता है? ३. सर्व के द्वारा देश का आहरण करता है? ४. सर्व के द्वारा सर्व का आहरण करता है? गौतम! वह १. देश के द्वारा देश का आहरण नहीं करता। २. देश के द्वारा सर्व का आहरण नहीं करता। ३. सर्व के द्वारा देश का आहरण करता है। ४. अथवा सर्व के द्वारा सर्व का आहरण करता है।
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
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