SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र श. १ : उ. ५ : सू. २१८-२२६ गौतम ! एक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त, एक मायोपयुक्त अथवा एक लोभो -पयुक्त होता है । क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त, मायोपयुक्त अथवा लोभोपयुक्त होते हैं । अथवा एक क्रोधोपयुक्त, एक मानोपयुक्त। अथवा एक क्रोधोपयुक्त, मानोपयुक्त होते हैं। इस प्रकार अस्सी भंग ज्ञातव्य हैं। इस प्रकार यावत् 'संख्येय समय अधिक जघन्य स्थिति' वाले नैरयिकों के अस्सी भंग होते हैं। 'असंख्येय समय अधिक जघन्य स्थिति' वाले तथा 'विवक्षित नरकावास के प्रायोग्य उत्कृष्ट स्थिति' वाले नैरयिकों के सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २१९. भन्ते ! इस रत्नप्रभा - पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में रहने वाले नैरयिक-जीवों के कितने अवगाहना- स्थान प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! उनके असंख्येय अवगाहना स्थान प्रज्ञप्त हैं, जैसे जघन्य अवगाहना, एक प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना, दो प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना यावत् असंख्येय प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना । विवक्षित नरकावास के प्रायोग्य उत्कृष्ट अवगाहना । २२०. भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास की जघन्य अवगाहना में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं ? इनके अस्सी भंग वक्तव्य हैं यावत् संख्येय प्रदेश अधिक अघन्य अवगाहना में वर्तमान नैरयिकों के भी अस्सी भंग वक्तव्य हैं। असंख्येय प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना में वर्तमान और विवक्षित नरकावास के प्रायोग्य उत्कृष्ट अवगाहना में वर्तमान नैरयिकों के सत्ताईस भंग होते हैं । २२१. भन्ते ! इस रत्नप्रभा - पृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से प्रत्येक नरकावास में रहने वाले नैरयिकों के कितने शरीर प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! उनके तीन शरीर प्रज्ञप्त हैं, जैसे - वैक्रिय, तैजस और कार्मण । २२२. भन्ते ! इस रत्नप्रभा - पृथ्वी यावत् वैक्रिय शरीर में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं ? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २२३. इसी गमक (सदृश पाठ - पद्धति) के अनुसार तीनों (वैक्रिय, तैजस और कार्मण) शरीर वक्तव्य हैं। २२४. भन्ते! इस रत्नप्रभा - पृथ्वी यावत् नैरयिकों के शरीर किस संहनन (अस्थि-संरचना) वाले प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! छह संहननों में से उनके कोई संहनन नहीं होता। उनके शरीर में न अस्थियां हैं, न शिराएं हैं और न स्नायु हैं । जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनोरम होते हैं, वे इनके शरीर संघात रूप में परिणत होते हैं। - २२५. भन्ते ! इस रत्नप्रभा - पृथ्वी यावत् छह संहननों में से असंहनन - अवस्था में वर्तमान नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त होते हैं? सत्ताईस भंग वक्तव्य हैं। २२६. भन्ते ! इस रत्नप्रभा - पृथ्वी यावत् नैरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं ? ३०
SR No.032416
Book TitleBhagwati Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy