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________________ ३०० ४. भिक्षु वाङ्मय-खण्ड-१० आगे चवदें रत्न घरे परगट्या रे, वळे प्रगट्या नव निधान। दिन दिन इधिकी रिध संपजे रे, तिणरें प्रबल पुन , असमान।। ५. चक्रवत विना नही ओर रे रे, चवदें रत्न नव निधान। तीर्थंकर वासुदेव त्यारे पिण नही रे, नहीं छे जिण तिणनें आसान।। अश्व रथ छे अति रलीयांमणो रे, ते जाणें के देव विमाण। पवन वेग ज्यूं चालें उतावलो रे, ते मिल्यों छे पुन जोगें आंण।। ७. भरत खेत्र ना देवी देवता रे, त्यां सगलां में आंण मनाय। त्यांने सेवग ठहराया छे आपरा रे, त्यांरो भेटणो ले लेने ताहि।। ८. पूर्व पिछम ने दिखण दिसें रे, लवण समुद्र तांइ प्रमाण। चूल हेमवंत उत्तर दिसें रे, त्यांमें सगलें वरतें छे आण।। ९. हाथी घोडा रथ भरत में रे, चोरासी चोरासी लाख। पायदल छीनू कोड आए मिली रे, जंबूधीप पन्नत्ती में साख।। १०. मिनखां री तो जिहांइ रही रे, देवता करें छे सेव। वळे कार्य भरत नरिंद री रे, करें छे देवता स्वयमेव।। ११. वळे आखा भरत खेत्र मझे रे, भरत जी सरीखो नही कोय। इंद्र तणी परें दीपतों रे, त्यांने दीठां आणंद होय।। १२. अनमी भोमीया वस कीया रे, कोइ माथों न सकें उपाड। आखा भरत क्षेत्रर मझे रे, सत्रू न रह्यों लिगार।। १३. चक्ररत्न देवतां सूर्य सारिखों रे, ते चालें सहस सहीत सूं रे, वाजंत्र गगन मझार। वाजें धुंकार।।
SR No.032414
Book TitleAcharya Bhikshu Aakhyan Sahitya 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2011
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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