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________________ ये सब वाक्य शुद्ध हैं और इन सबका अर्थ 'मैं लड्डू खाता हूँ' ही है। इसीलिए पाठकों को चाहिए कि वे सीखे हुए शब्दों को यथासम्भव उपयोग में लाकर नए-नए वाक्य बनाएँ। अब इस पाठ में कोई नया शब्द नहीं दिया जा रहा। पाठक आज कोई नया शब्द याद न करें और पिछले पाठों में से कोई वाक्य या शब्द भूल गये हो तो उसको ठीक-ठीक स्मरण करें । इस पाठ में पाठकों को ऐसे वाक्य दिए जाएँगे जिनके शब्दों का प्रयोग पहले हो चुका है। यहाँ एक बात स्मरण रखनी चाहिए कि मनुष्यों के नाम वाक्य में आने से संस्कृत में कोई नई रचना नहीं होती । देखिए रामचन्द्रः वनं गच्छति - रामचन्द्र वन को जाता है । विलियमः वनं गच्छति - विलियम वन को जाता है । मुहम्मदः वनं गच्छति - मुहम्मद वन को जाता है 1 अर्थात् बोलने के समय पाठक चाहे जिसका नाम वाक्य में रखकर अपना आशय प्रकट कर सकते हैं । संस्कृत भाषा में दूसरी आसानी यह है कि लिंग के अनुसार शब्दों की विभक्तियाँ इसमें नहीं बदलतीं। जिस अवस्था में बदलती हैं उस का वर्णन हम आगे करेंगे। इस समय पाठक यही समझें कि नहीं बदलतीं । देखिए तस्य लेखनी - उसकी लेखनी । तस्य पुस्तकम् - उसकी किताब । तस्य फलम् - उसका फल । तस्य पुत्रः - उसका लड़का । पाठक देखेंगे कि हिन्दी में 'उसकी, उसका' शब्दों में जिस कारण 'की, का' यह भेद हुआ है, वैसा कोई भेद संस्कृत में नहीं है । इस कारण संस्कृत के वाक्य बनाना हिन्दी में वाक्य बनाने से सुगम है । I वाक्य 1. त्वम् अद्य गृहं गन्तुं किमर्थम् इच्छसि - तू आज घर जाने की क्यों इच्छा करता है ? 2. अद्य मम पिता गृहम् आगमिष्यति - आज मेरा पिता घर आएगा । 3. सः कदा आगमिष्यति, त्वं जानासि किम् - वह कब आएगा, तू जानता है क्या ? 4. नहि अहं न जानामि, परन्तु सः रात्रौ आगमिष्यति - नहीं, मैं नहीं जानता, परन्तु वह रात्रि में आएगा । 5. जानसनः इदानीं किं करोति-जानसन अब क्या करता है ? 37
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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