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________________ 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. इनके रूप 'वद्' धातु के समान ही होते हैं । रामः अटति - राम घूमता है । रामलक्ष्मणौ अटतः - राम और लक्ष्मण (ये दोनों) घूमते हैं। जनाः अटन्ति - सब लोग घूमते हैं । त्वं असि - तू जाता है । यूयं अतथ - तुम सब जाते हो । युवां अवथः- तुम दोनों रक्षण करते हो । सुवर्णम् अर्घति - सोने का मूल्य होता है । देवदत्तः अर्चति-देवदत्त पूजा करता है ' कोशलः - देश का नाम स्फीतः - उन्नत, बड़ा, शुद्ध मुदितः- आनन्दित पाठ 35 जनपदः - राष्ट्र निर्मिता-बनाई हुई अमरावती - देवों की नगरी मन्त्रज्ञाः - गुप्त बातें जाननेवाले, उत्तम सलाहकार प्रशान्त-शांतियुक्त तप्यमान न- तपनेवाला वंशकर - वंश चलानेवाला अन्तःपुरम् - स्त्रियों का स्थान पुत्रीय - पुत्र उत्पन्न करनेवाला अर्घ-आधा अवशिष्ट - बाकी, शेष दारक्रिया - विवाह निवसति रहता है पौरप्रियः - जनों का प्यारा वशी - इन्द्रियों पर नियंत्रण रखनेवाला [140 सत्याभिसन्धः - सत्य प्रतिज्ञा करनेवाला इङ्गितज्ञः - गुप्त विचार जाननेवाला मन्त्रिणः - वज़ीर, प्रधान मृषावादी - झूठ बोलनेवाला बभूव-हुआ चिन्तयमान- चिंता करनेवाला बुद्धिः - विचार श्लक्ष्णम्-नरम, मीठा अब्रवीत्-बोला यजामि - यज्ञ करता हूं अमानयत् - मनाया अनुज्ञात- आज्ञा किया हुआ पावक - अग्निः भूत-प्रकट हुआ पायसम् - खीर पात्री - बरतन तथेति ठीक ऐसा कहकर प्रीतः - संतुष्ट हुआ अभिवाद्य - नमस्कार करके हयमेधः वाजिमेधः अश्वमेध
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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