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________________ अब इन क्रियाओं का उपयोग देखिएउत्तम पुरुष(1) अहं वदामि। मैं बोलता हूं। (2) आवां वदावः। हम दोनों बोलते हैं। (3) वयं वदामः। हम सब बोलते हैं। मध्यम पुरुष(1) त्वं वदसि। तू बोलता है। (2) युवां वदथः। तुम दोनों बोलते हो। (3) यूयं वदथ। तुम सब बोलते हो। प्रथम पुरुष(1) सः वदति। वह बोलता है। (2) तौ वदतः। वे दोनों बोलते हैं। (3) ते वदन्ति । वे सब बोलते हैं। संस्कृत में 'अहं, त्वं, सः' आदि सर्वनाम वाक्यों में रखने की आवश्यकता नहीं होती। यदि चाहें तो रख सकते हैं न चाहें तो छोड़ सकते हैं। क्रियापदों में स्वयं 'एक, दो, बहुत' संख्या बताने की शक्ति रहती है। जैसे वदावः-हम (दोनों) बोलते हैं। वदामः-हम (सब) बोलते हैं। वदसि-तू (एक) बोलता है। वदन्ति-वे (सब) बोलते हैं। इस प्रकार केवल क्रियाओं से ही संख्या व्यक्त होती है। अस्तु, निम्न धातुओं के रूप पूर्व के समान ही होते हैं प्रथम गण, परस्मैपद I. अट् (गतौ) = जाना-अटति। १. अत् (सातत्य गमने) = हमेशा जाते रहना, गमन करना-अतति। 3. अर्घ (मूल्ये) = मूल्य-कीमत होना-अर्घति। १. अर्च् (पूजायाम्) = पूजा करना-अर्चति। 5. अर्ज (अर्जने) = कमाना-अर्जति। 1. अर्ह (पूजायाम्) = योग्य होना-अर्हति। 1. अव् (रक्षणे) = संरक्षण करना-अवति।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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