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________________ (10) अवदा कर्म (10) उत्तम कार्य (1) शृणोतु आर्या मे पराक्रमम्। (1) देवी ! आप सुनें मेरा पराक्रम। योऽसौ' आया हस्ती' स महामानं जो वह आर्या (आप) का हाथी है, उसने व्यापाय आलानस्तम्भ बभञ्ज। महावत को मारकर बन्धन-स्तम्भ को तोड़ डाला। (2) ततः स महान्तं संक्षोभं कुर्वन् (2) इसके बाद, वह बड़ा रौला करता राजमार्गम् अवतीर्णः। अत्रान्तरे उघुष्टं हुआ राजमार्ग पर आया। इतने में पुकारा जनेन लोगों ने (3) अपनयत बालकजनम् । आरोहत (3) ले जाओ बालकों को। चढ़ो वृक्षन् भित्तीश्च ! हस्ती इत एति, इति। अभी वृक्षों और दीवारों पर। हाथी इधर आ रहा है। (4) करी कर-चरण-रदनेन अखिलं (4) हाथी सूंड और पाँवों की रगड़ वस्तुजातं विदारयन्नास्ते । एतां नगरी से सब पदार्थों को चूर कर रहा है। इस नलिन-पूर्णा महासरसीम् इव मनुते। नगरी को (वह) कमलिनियों से भरे हुए बड़े तालाब के समान मानता है। (5) तेन ततः कोऽपि परिव्राजकः (5) तत्पश्चात् उसने कोई संन्यासी समासादितः। तञ्च' परिभ्रष्ट-दण्ड- पकड़ा। जिसके दण्ड, कमंडल, बरतन कुण्डिका-भाजनं यदा स चरणैर्मर्दयितुं गिर गये हैं, ऐसे उस (संन्यासी) को जब उद्युक्तो वभूव', तदा परिव्राजकं परित्रातुं वह चरणों से रौंदने के लिए तैयार हुआ, दृढमतिम् अकरवम्। तब संन्यासी की रक्षा करने की दृढ़ बुद्धि (मैंने) की। (6) एवं संप्रधार्य सत्वरं लोहदण्डम् (6) शीघ्र ही इस प्रकार निश्चय 'एक तरसा गृहीत्वा तं हस्तिन। अहनम्।। करके लोहे का एक सोटा शीघ्रता से पकड़कर (मैंने) उस हाथी को मारा। (7) विन्ध्यशैल-शिखराभं महाकायम् (7) विन्ध्यपर्वत के शिखर के समान अपि तं जर्जरीकृत्य स परिव्राजको । बड़े शरीर वाले उस (हाथी) को भी जर्जर मोचितः । ततः 'शूर साधु साधु' इति करके, वह संन्यासी छुड़वाया। पश्चात् सर्वेऽपि" जनाः उच्चैरुदघोषयन्। 'शूर शाबाश ! शाबाश' ऐसा सब लोगों ने ऊंची आवाज़ से पुकारा। 1. यः+असौ। 2. आर्यायाः+हस्ती। 3. भित्तीः+च। 4. इतः एति। 5. विदारयन्+आस्ते। 6. कः+अपि। 7. तम्+च। 8. चरणैः+मर्दयितुम्। 9. उद्युक्तः+बभूव। 10. परिव्राजकः+मोचितः। 11. सर्वे+अपि।12. उच्चैः+उदघोषयन्। 71
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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