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________________ धातृ + अंशः = धात्रंशः शक्लृ + अंतः = शक्लन्तः शब्द-पुल्लिंग हस्तिन, करिन् हाथी। महामात्र महावत, हाथीवाला। संक्षोभ रौला, क्षोभ । लोह लोहा। आर्य-श्रेष्ठ। प्रातारक ओढ़ने का कपड़ा। रद दाँत। राजमार्ग=बड़ा रास्ता, माल रोड। परिव्राजक संन्यासी, भिक्षु। दण्ड-सोटी। पराक्रम शौर्य। आलानस्तम्भ (हाथी) बांधने का खम्भा। चरण पांव। महाकाय बड़े शरीर वाला। वेश-पोशाक। स्त्रीलिंग आर्या श्रेष्ठ स्त्री। कुण्डिका कमण्डलु । भित्ति-दीवार । दृढ़मति=स्थिर बुद्धिवाली। नपुंसकलिंग कर्म=कार्य। नलिन–कमल-दंड। भाजनबर्तन । रदन-रगड़, दाँत। विशेषण अवदात-उत्तर, प्रशंसायोग्य। साधु-अच्छा ! दीर्घ लम्बा। अखिल सम्पूर्ण। उद्युक्त तैयार। समासादित पकड़ा हुआ। विनीत नम्र। अवतीर्ण-उतरा हुआ। विदारयन्-तोड़ता हुआ। शिखराभ-शिखर के समान। मोचित छुड़ाया हुआ। अन्य इतः इस ओर। उद्धृष्टम् पुकारा। तरसा वेग से। ततः वहां से। क्रिया शृणोतु-सुने (या आप सुनिए)। आरोहत-चढ़ो (तुम सब)। मनुते मानता है। उदघोषयन्बोले (वे सब)। व्यापाय-हनन करके। आस्ते बैठा है (वह)। अहनम् मैंने मारा। जर्जरीकृत्य-जर्जर करके। बभञ्ज-तोड़ा (उसने)। अकरवम्-मैंने किया। संप्रधार्य-निश्चय करके। निश्वस्य साँस लेकर। अपनयत ले जाओ (तुम सब)। मर्दयितुम् रगड़ने के लिए। परित्रातुम् रक्षा करने के लिये। निवेदयितुम् कहने के लिये।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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