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________________ जहां इनका उच्चारण होता है, उसी स्थान पर पहले हवा का आघात करके, फिर उक्त व्यञ्जनों का उच्चारण करने से निम्न व्यञ्जन बनते हैं घ झढ ध भ इनको ज़ोर से बोला जाता है। इनके ऊपर जो बल-ज़ोर होता है, उस ज़ोर को कम करके यही वर्ण बोले जाएं तो निम्न वर्ण बनते हैं ग जड द ब इनका जहां उच्चारण होता है, उसी स्थान के थोड़े से ऊपर के भाग में विशेष बल न देने से निम्न वर्ण बनते हैं इनका हकार के साथ ज़ोरदार उच्चारण करने से निम्न वर्ण बनते हैं ख छ ठ थ फ अनुस्वारपूर्वक इनका उच्चारण करने से इन्हीं के अनुनासिक बनते हैं अङ्क पञ्च घण्टा इन्द्र कम्बल सकार का तालु, मूर्धा तथा दन्त स्थान में उच्चारण किया जाए तो क्रम से, श, ष, स, ऐसा उच्चारण होता है। 'ल' का मूर्धा स्थान में उच्चारण करने से 'ळ' बनता है। इस प्रकार वर्णों की उत्पत्ति होती है। इस व्यवस्था से वर्गों के शुद्ध उच्चारण का भी पता लग सकता है। ऊपर जहां-जहां व्यञ्जन लिखे हैं वे सब ‘क, ख, ग ऐसे-अकारान्त लिखे हैं। इससे उच्चारण करने में सुगमता होती है। वास्तव में वे 'क्, ख्, ग्' ऐसे-अकाररहित हैं, इतनी बात पाठकों के ध्यान धरने योग्य है। वर्णों के ऊपर बहुत विचार संस्कृत में हुआ है। उसमें से एक अंश भी यहां नहीं दिया। हमने जो कुछ थोड़ा-सा दिया है, उससे पाठकों की समझ में आ जाएगा कि संस्कृत की वर्ण-व्यवस्था बहुत सोचकर बनाई गई है, अन्य भाषाओं की तरह ऊटपटांग नहीं है। संस्कृत में कोमल पदार्थों के नाम कोमल वर्गों में पाए जाते हैं, जैसे-कमल, जल, अन्न आदि। कठोर पदार्थों के नामों में कठोर वर्ण पाए जाएंगे, जैसे-खर, प्रस्तर, गर्दभ, खड्ग आदि। ___कठोर प्रसंग के लिए जो शब्द होंगे, उनमें भी कठोर वर्ण पाए जाएंगे, जैसे-युद्ध, विद्रावित, भ्रष्ट, शुष्क, आदि। आनन्द के प्रसंगों के लिए जो शब्द होंगे, उनमें कोमल अक्षर पाए जाएंगे,. जैसे-आनन्द, ममता, सुमन, दया आदि।
SR No.032413
Book TitleSanskrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShripad Damodar Satvalekar
PublisherRajpal and Sons
Publication Year2010
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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