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ज्ञाता-द्रष्टा भाव (२) जागरूकता से श्रेष्ठ रुचि का निर्माण होता है और श्रेष्ठ रुचि से जागरूकता बढ़ती है तथा कार्यों में प्राणवत्ता आ जाती है।
जागरूकता और रुचि ये दोनों एक दृष्टि से पर्यायवाची हैं। जिस व्यक्ति की रुचि परिष्कृत होती है, उसकी जागरूकता सहज ही बढ़ जाती है। जो व्यक्ति जागरूक होता है, वह अपनी रुचि को परिष्कृत कर लेता है।
जागरूकता से प्रवर, होता रुचि-निर्माण । रुचि ही कार्य कलाप को करती है सप्राण ।।
अध्यात्म पदावली ५०
८ मार्च
२००६