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ज्ञायक भाव (२)
व्यवहार नय के द्वारा दर्शन, ज्ञान और चारित्र का पृथक्पृथक् व्यपदेश किया जाता है। शुद्ध नय की दृष्टि में ज्ञायक भाव में ज्ञान, दर्शन और चारित्र सबका समावेश होता है, इसलिए उनका पृथक्-पृथक् व्यपदेश नहीं होता।
ववहारेणुवदिस्सदि णाणिस्स चरित्तदंसणं णाणं। णवि णाणं ण चरितं ण दंसणं जाणगो सुद्धो।
समयसार ७
६ मार्च
२००६