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ज्ञायक भाव (१) ज्ञायक भाव की स्थिति को. प्राप्त शुद्धात्मा न प्रमत्त होता और न अप्रमत्त होता। यह शुद्ध नय को जानने वाले साधकों का अभिमत है। वह ज्ञाता है। ज्ञाता-आत्मा शुद्ध आत्मा होती है, इसलिए उसके लिए प्रमत्त और अप्रमत्त का व्यपदेश नहीं करना चाहिए।
णवि होदि अप्पमत्तो ण पमत्तो जाणणो दु जो भावो। एवं भणंति सुद्धा णादा जो सो दु सो चेव ।।
समयसार ६
५ मार्च २००६