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आत्मा का अनुचिंतन सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र-इन तीनों का बार-बार चिंतन करना चाहिए। निश्चय नय के अनुसार तीनों आत्मा से अभिन्न हैं, इसलिए इनके अनुचिंतन का अर्थ है-आत्मा का अनुचिंतन करना।
णाणह्मि भावणा खलु कादव्वा दंसणे चरिते य। ते पुण तिण्णिवि आदा तम्हा कुण भावणं आदे।।
समयसार १
२० फरवरी २००६