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आत्मशक्ति पांच इन्द्रिय वाले देव, मनुष्य और तिर्यंच तुम्हारे लिए दुःखद कैसे हो सकते हैं? एक इन्द्रिय वाली वायु भी प्रतिकूल नहीं होती, वह भी सदा अनुकूल रहती है।
तुमने दुर्दान्त राग और द्वेष का दमन किया। विषयविकारों पर विजय प्राप्त की। मैं तुम्हारी शरण में आया हूं। तुम गति और मति देने वाले हो।
पंचेन्द्री सुर नर तिरि तुम स्यूं, किम होव दुखदायो। एकेन्द्री अनिल तजै प्रतिकूलपणुं, बाजै गमतो वायो रा।। रागद्वेष दुर्दत तै दमिया, जीत्या विषय विकारो। दीनदयाल आयो तुम सरणे, तूं गति मति दाता रो रा।।
चौबीसी २०.५,६
१६ फरवरी २००६