________________
आत्मज्ञान (२) शरीर और आत्मा के भेद को जाने बिना आत्मतत्त्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। उसके बिना भेदविज्ञान नहीं हो सकता। इसलिए मुमुक्षु साधक को सर्वप्रथम विभावपर्यायों से रहित स्वभावस्थित आत्मा का निश्चय करना चाहिए।
आत्मतत्त्व के ज्ञान के बिना भी कुछ लोग ध्यान की साधना करते हैं, किन्तु वे उस भूमिका तक नहीं पहुंच सकते, जहां आत्मज्ञ पहुंचते हैं।
अद्य रागज्वरो जीर्णो मोहनिद्राद्य निर्गता। ततः कर्मरिपुं हन्मि ध्याननिस्त्रिंशधारया।। आत्मानमेव पश्यामि नि याज्ञानजं तमः । प्लोषयामि तथात्युग्र कर्मेन्धनसमुत्करम्।।
ज्ञानार्णव ३१.३,४ १८ फरवरी २००६