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अध्यात्म योग (१०)
पर भाव में अपनेपन की बृद्धि दुःख का मूल कारण है अपनी आत्मा के अतिरिक्त संसार में जो कुछ है, वह पर है - यह एक सचाई है। इस सचाई पर आवरण आते ही व्यक्ति पर के साथ अपनत्व जोड़ लेता है। इससे आत्मस्वरूप की विस्मृति हो जाती है। यह एक विचित्र चक्रवात है। इसमें फंसने के बाद निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है।
पर में जो आत्मीय मति, वही दुःख का मूल । विस्मृति है निज भाव की यह कैसा वातूल ।।
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अध्यात्म पदावली १०
६ फरवरी
२००६
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