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अध्यात्म योग (१)
जहां ममता है, मूर्च्छा है, उसकी परिणति विपरीत दृष्टिकोण में होती है। विपरीत दृष्टिकोण का नाम मिथ्यात्व है। उसका हेतु है ममता । जहां समता की अनुभूति होती है वहां दृष्टिकोण सम्यक् बनता है। आत्मा का विकास उसी स्थिति में संभव है।
दृष्टि - विपर्यय है सही, ममता का परिणाम | समता की अनुभूति में, आत्मोदय अभिराम ।।
अध्यात्म पदावली
B & G & G
८ फरवरी २००६
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