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अध्यात्म योग (८) पुद्गल जड़ है और आत्मा चेतन है। इन दोनों का स्वभाव भिन्न-भिन्न है। पुद्गल कभी चेतन नहीं हो सकता और आत्मा कभी जड़ नहीं हो सकती। फिर भी इनके बीच स्व-स्वामीभाव संबंध बनता है। आत्मा स्वामी बनती है और पुद्गल उसका स्व बनता है। इसका कारण मूर्छा है। मूर्छा न हो तो संबंध की स्थापना हो ही नहीं सकती।
पुद्गल जड़ चित् चेतना, दोनों भिन्न स्वभाव । स्व-स्वामी संबंध है, मूर्छा का अनुभाव।।
अध्यात्म पदावली ८
७ फरवरी २००६