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अध्यात्म योग (४)
मैं धनवान हूं, मैं न्यायवेत्ता हूं, मैं ही एक मात्र आधार हूं - इस प्रकार व्यक्ति किसी भी स्थिति के साथ 'अहं' तत्त्व या 'मैं' भाव को जोड़ता है। यह एक तरह का आरोपण है। इस आरोपण के चक्र में ही जगत् का सारा व्यवहार चलता है।
मैं समृद्ध मैं न्यायविद्, मैं अनन्य आधार । आरोपण के चक्र में, चलता जग व्यवहार ॥ अध्यात्म पदावली ४
३ फरवरी
२००६
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