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योग और मंत्र (१०)
जैन परम्परा में वज्रस्वामी तथा उनके पार्श्ववर्ती अनेक मंत्रविद् आचार्यों ने विद्याप्रवाद नामक नौवें पूर्व से अनेक विद्याओं को उद्धृत किया। उनमें सिद्धचक्र का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है, उसका एक प्रयोग है
मंत्र
'अ'–नाभिकमल
'सि' मस्तककमल
'आ' - मुखकमल
'उ'- हृदयकमल
.'सा' - कंठकमल
नाभिपद्मे स्थितं ध्यायेदकारं विश्वतोमुखम् । 'सि' वर्णं मस्तकाम्भोजे, 'आ' कारं वदनाम्बुजे || 'उ' कारं हृदयाम्भोजे, 'सा' कारं कण्ठपंकजे । सर्वकल्याणकारीणि बीजान्यन्यान्यपि स्मरेत् ॥ योगशास्त्र ८.७६,७७
Sau Đau tinh Đan
२३ जनवरी
२००६
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४१
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