SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अचौर्य महाव्रत अचौर्य महाव्रत में अदत्तादान का विरमण किया जाता है। अचौर्य महाव्रत की आराधना के लिए उपस्थित मुमुक्षु सर्व अदत्तादान से विरति करता है। __ वह गांव में, नगर में या अरण्य में कहीं भी अल्प या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी अदत्त-वस्तु का स्वयं ग्रहण नहीं करता, दूसरों से अदत्त-वस्तु का ग्रहण नहीं करवाता और अदत्त-वस्तु ग्रहण करने वालों का अनुमोदन भी नहीं करता। तचे भंते! महव्वए अदिनादाणाओ वेरमणं। सव्वं भंते! अदिन्नादाणं पच्चक्खामि-से गामे वा नगरे का रण्णे वा अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूलं वा चित्तमंतं वा अचित्तमंतं वा, नेव सयं अदिन्नं गेण्हेज्जा नेवन्नेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा अदिन्नं गेण्हते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा। दसवेआलियं ४.१३ २४ अप्रैल २००६ 5.-.--.................-(१३७ २८.--.-DEL-ON-DE...२७.२५..
SR No.032412
Book TitleJain Yogki Varnmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Vishrutvibhashreeji
PublisherJain Vishva Bharati Prakashan
Publication Year2007
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy