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सत्य महाव्रत
सत्य महाव्रत में मृषावाद का विरमण किया जाता है। सत्य महाव्रत की आराधना के लिए उपस्थित मुमुक्षु सर्व मृषावाद से विरति करता है।
वह क्रोध से या लोभ से, भय से या हंसी से, असत्य नहीं बोलता, दूसरों से असत्य नहीं बुलवाता और असत्य बोलने वालों का अनुमोदन भी नहीं करता ।
दोघे भंते! महव्वए मुसावायाओ वेरमणं ।
सव्वं भंते! मुसावायं पच्चक्खामि - से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा, नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहिं मुसं वायावेज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समणुजाणेज्जा ।
दसवेआलियं ४.१२
२३ अप्रैल
२००६
१३६o
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