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________________ पाठ ४४ : तद्धित ७ (इकण अधिकार) शब्दसंग्रह अंगुलीयकम् (अंगूठी) । काचवलयम् (चूडी)। कटिसूत्रम्, मेखला (करधन)। किंकिणी (धुंघरु)। केयूरम् (बाजूबन्द) । पादाभरणम् (लच्छा) । ग्रैवेयकम् (हंसुली) । कुंडलम् (कान की बाली) । ललाटाभरणम् (टिकुली) । एकावली (एकलड का हार) । मुद्रिका (नामांकित अंगूठी) । ओष्ठरञ्जनम् (लिपस्टिक)। कपोलरञ्जनम् (रूज़)। नखरंजनम् (नेल पालिश) । फेनिलः (साबुन) । रोममार्जनी (ब्रुश) । दंतचूर्णम् (टूथपाउडर) । दंतधावनम् (दांत का ब्रुश, दातून) । दंतपिष्टकम् (टूथपेस्ट)। धातु-लिहंन्क्-आस्वादने (लेढि, लीढे)—आस्वादन करना । ओहांक-त्यागे (जहाति) छोडना । जिंभीक्-भये (बिभेति) डरना। लिह , ओहांक् और भी धातु के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट २ संख्या ६२, ६३,३३) । नियम __ इस प्रकरण में नीचे लिखे गए सभी अर्थों में इकण प्रत्यय होता है। __ नियम ३०४-(तेन दीव्यतिखनतिजयतिजितेषु ७।२।२) तृतीयान्त शब्द से, दीव्यति (जआ खेलना) खनति (खोदना) जयति (जीतना) जित (जीता हुआ)---इन अर्थों से इकण प्रत्यय होता है । अझै र्दीव्यति आक्षिकः । कुद्दालेन खनति कौद्दालिकः । अझै जयति आक्षिकः । अजितं आक्षिकम् । नियम ३०५ -- (संसृष्टे ७।२।३) संसृष्ट (दूसरे द्रव्य का मिश्रणभूत) अर्थ में इकण् प्रत्यय होता है । दघ्ना संसृष्टं दाधिकम् । पैप्पलिकम् । नियम ३०६-- (संस्कृते ७।२।८) संस्कृत (सतउत्कर्षाधानं संस्कारः) अर्थ में इकण् प्रत्यय होता है। दध्ना संस्कृतं दाधिकम् । मारिचिकम् । उपाध्यायेन संस्कृतः औपाध्यायिकः । विद्यया संस्कृतः वैद्यिकः । नियम ३०७-(तरति ७।२।१०) तरति (तैरना) के अर्थ में इकण् प्रत्यय होता है । उडुपेन तरति औडुपिकः । गौपुच्छिकः । नियम ३०८-(नौ द्विस्वरादिकः ७।२।११) नौ और द्विस्वरवाले शब्दों से तरति अर्थ में इक प्रत्यय होता है। नावा तरति नाविकः । बाहुकः, घटिकः, दृतिकः । नियम ३०६-(चरति ७।२।१२) चरति (जाना और खाना) अर्थ
SR No.032395
Book TitleVakya Rachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year1990
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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