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________________ भावार्थ-स्वभावशुचिता, सहजमैत्री, सहजत्याग, सत्य, आलस्यरहितता, सुशीलता, शूरवीरता आदि अनेक गुण निर्ममत्व (वीतरागी) साधकों में प्रगट होते हैं। निर्ममता से ध्यान जहा बलाहगे वुढे, जायंते हरिदंकुरा। तहा सुद्धप्पझाणं च, णिम्ममत्तस्स चिंतणे ॥46॥ अन्वयार्थ-(जहा) जैसे (बलाहगे वुठे) मेघों के बरसने पर (हरिदंकुरा) हरे अंकुर (जायंते) उत्पन्न हो जाते हैं (तहा) वैसे ही (णिम्ममत्तस्स चिंतणे) निर्ममत्व का चिंतन करने पर (सुद्धप्पझाणं) शुद्धात्मध्यान उत्पन्न होता है। भावार्थ-जैसे मेघों के बरसने पर हरे अंकुर (घास) उत्पन्न होते हैं वैसे ही सम्यक् निर्ममत्व (वीतरागता) से शुद्धात्मध्यान तथा मोक्ष उत्पन्न हो जाता है। ममता से गुणों का नाश होता है वदं तवं जसो विजा, सूरत्तं च दमो दया। विणस्सेंति ममत्ताए, कुढारेण जहा लदा ॥47॥ अन्वयार्थ-(वदं तवं जसो विजा, सूरत्तं च दमो दया) व्रत, तप, यश, विद्या, शूरता, इंद्रियदमन और दया, आदि गुण (ममत्ताए) ममत्व से (विणस्सेंति) विनष्ट हो जाते हैं (जहा) जैसे (कुढारेण) कुल्हाड़ी से (लदा) लता। भावार्थ-ममता (राग) से अहिंसा आदि सभी व्रत, उत्तम तप, यश विद्या, शूरवीरता, पंचेन्द्रिय दमन और दया आदि महानगुण उसी प्रकार आसानी से नष्ट हो जाते हैं जैसे कुल्हाड़ी (परसु) से कोमल लता। इसलिए ममत्व का त्याग करो। वे धन्य हैं जहा चित्तं तहा वाचो, जह वाचो कजं तहा। धण्णा ते तिजगे जेसिं, णिम्ममत्तं हि वट्टदे ॥48॥ अन्वयार्थ-(जहा चित्तं तहा वाचो) जैसा चित्त वैसा वचन (जह वाचो कजं तहा) जैसा वचन वैसा कार्य जो करते हैं तथा (जेसिं) जिनके (णिम्ममत्तं हि वट्टदे) निर्ममता (समता) ही वर्तती है (ते) वे (तिजगे) त्रिलोक में (धण्णा) धन्य हैं। भावार्थ-जो जैसा मन में है, वैसा वचन बोलते हैं।, जैसा वचन बोलते हैं। वैसी योग्य क्रिया करते हैं। तथा जिनके सदैव निर्ममता अर्थात् समता प्रवर्तती है, वे महाशय धन्य हैं। इन्हें थोड़ा भी शेष मत छोडो अग्गी बाही रिणं थोवं, ममत्तं काम-कालसं। एदे सिग्धं हि वड्ढते, इणं सेसं ण मुंचह ॥49॥ 318 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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