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________________ चल सकता है, वह भी निजभावों पर, अतः आत्मकेन्द्रित होकर हर वर्तमान समय में आत्मानुभव करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। जो दिखता, सो मैं नहीं जो दिस्सदि ण वि सो हं, अहं तु णिच्चं अमुत्त-मविगारो । णादा - दट्ठा चेदा णिच्छयदो सेसो य ववहारो ॥76॥ अन्वयार्थ—(जो दिस्सदि ण वि सो हं) जो दिखता है वह मैं नहीं हूँ (तु) किन्तु (णिच्छयदो) निश्चय से (अहं) मैं ( णिच्चं अमुत्त-मविगारोणादा-दट्ठा चेदा) नित्य, अमूर्त, अविकार, ज्ञाता - दृष्टा, चेता हूँ (सेसा य ववहारो) शेष सब व्यवहार है। - अर्थ — जो दिखता है वह मैं नहीं हूँ, किन्तु मैं तो निश्चय से अमूर्त, अविकार, ज्ञाता-दृष्टा, चेता हूँ, शेष सब व्यवहार है । व्याख्या - जो-जो कुछ पौगलिक पदार्थ इन चर्मचक्षुओं से दिखते हैं, वे मैं नहीं हूँ; क्योंकि वे स्पर्श, रस, गंध, वर्णमय पुद्गल द्रव्य की संरचना हैं। मैं तो ध्रुवदृष्टि से अमूर्त, अविकार, ज्ञाता-दृष्टा, चेतन द्रव्य हूँ। शेष देह, वचन आदि पदार्थ व्यवहार से जीव के कहे जाते हैं । मोक्षपाहुड (29) तथा समाधितंत्र (18) में इस आशय की एक गाथा आई है। समयसार (49) व प्रवचनसार की सुप्रसिद्ध गाथा में भी कहा है अरस-मरूव-मगंधं, अव्वत्तं चेयणागुण-मसदं । जाण अलिंग्गहणं, जीवमणिदिट्ठ संठाणं ॥172 ॥ आत्मरूप के बोध से त्याग स्वयं होता है अप्परूवस्स बोहे, चागो सहजं सयं च पयडेदि । सयलसंगचागेण, जीवो य सयं खु सिज्झेदि ॥77॥ अन्वयार्थ – (अप्परूवस्स बोहे) आत्मरूप का बोध होने पर ( चागो सहजं सयं च पयडेदि) त्याग सहज स्वयं ही प्रकट होता है (य) तथा (सयलसंगचागेण) सकल संग त्याग से (जीवो) जीव (सयं खु सिज्झेदि) स्वयं ही सिद्ध होता है । अर्थ- जीव को आत्मस्वरूप का बोध होने पर त्याग स्वयं ही सहज प्रगट होता है तथा सकल-संग के त्याग से जीव स्वयं ही सिद्ध हो जाता है । व्याख्या:– 'त्याग करने का नहीं, त्याग होने का महत्त्व है ।' त्याग करना मतलब कर्तृत्व बुद्धि से वस्तु का त्याग करना, उसके अभाव में संक्लेशरूप भाव संभव है, किन्तु त्याग होने का मतलब वस्तुस्वरूप का सम्यक् बोध होने पर परपदार्थ का अन्यरूप श्रद्धान तथा उसके ग्रहण का अभाव इसके साथ गुरुसाक्षी अज्झप्पसारो :: 289
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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