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________________ पर से अथवा ज्ञान से बंध नहीं होता परदो य णत्थि बंधो, णाणसहावेण णत्थि बंधो त्ति। बज्झदि रागेण य तहा, चेयण! तम्हा तु तं मुंच आ74॥ अन्वयार्थ-(परदो य णत्थि बंधो) पर से बंध नहीं होता है (णाणसहावेण णत्थि बंधो त्ति) और न ही ज्ञानस्वभाव के द्वारा ही बंध होता है (तु) किन्तु (रागेण य बज्झदि) राग से बंधता है (तम्हा) इसलिए (चेयण!) हे जीव! (तं मुंच अ) उसे छोड़ो। अर्थ-हे जीव! पर से बंध नहीं होता है और न ज्ञानस्वभाव से ही बंध होता है, अपितु राग से बंध होता है, इसलिए उस राग को छोड़ो। व्याख्या-पर-पदार्थों से अर्थात् अन्य व्यक्ति या वस्तुओं से कर्मबंध नहीं होता, और न ही निज ज्ञानस्वभाव से ही बंध होता है। क्योंकि यदि वस्तुओं से बंध माना जाए तो वीतरागी मुनियों को भी बंध होगा और यदि ज्ञान से बंध माना जाए तो सिद्धों के भी बंध होगा? अतः यह सुनिश्चित है कि वस्तुएँ या ज्ञान बंध का कारण नहीं है, अपितु जो राग सहित ज्ञान (अध्यवसान) है, उससे बंध होता है, अतः हे जीव! तुम ज्ञानस्वभाव का आश्रय करो और राग भाव से ज्ञान के एकत्व का त्याग करो। निज-स्वरूप की शरण लो सरूवस्स सरण-गहणं, जीवा कजं इणं कुणह सेठें। जदि इत्तियं पि सिज्झदि, तो सिझंति हि असेसयं कजं75॥ अन्वयार्थ-(जीवा) हे जीवों! (सरूवस्स सरण-गहणं) स्वरूप की शरण ग्रहण (इणं) इस (सेठें) श्रेष्ठ (कजं कुणह) कार्य को करो (जदि इत्तियं पि सिज्झदि) यदि इतना ही सिद्ध हो गया (तो) तो (असेसयं कजं) सम्पूर्ण कार्य (हि) निश्चित ही (सिझंति) सिद्ध हो जाते हैं। अर्थ-स्व-स्वरूप की शरण ग्रहण रूप इस श्रेष्ठ कार्य को करो, यदि इतना यह सिद्ध हो जाता है तो सभी कार्य निश्चित ही सिद्ध हो जाते हैं। व्याख्या-हे जीव! निजात्म-स्वरूप की शरण ग्रहण करो, क्योंकि निजात्मा के आलंबन से ही विशुद्धि, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, संवर, निर्जरा व मोक्ष आदि गुण प्रकट होते हैं। तुम केवल वर्तमान में स्वरूप की शरण लो, बाकी सारे कार्य स्वतः सिद्ध हो जाते हैं। साधकतम कारण की विशुद्धि का हेतु होने से अरिहंत, सिद्ध, साधु व जिनोपदिष्ट धर्म भी शरणभूत है, किन्तु कब तक? जब तक आत्म-स्थिरता नहीं बन पा रही है। इस जीव का पुरुषार्थ केवल वर्तमान की एक समय वाली पर्याय पर ही 288 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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