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________________ कोई मेरा कुछ नहीं को वि मम किंचि णत्थि, अहमवि कस्स य किंचि णो अत्थि । एगत्तं कुणदु आदे, जेण दु सिग्धं हि सिज्झेज्जा ॥50॥ अन्वयार्थ – (को वि मम किंचि णत्थि ) कोई मेरा कुछ भी नहीं है (अहमवि कस्स य किंचि णो अत्थि) मैं भी किसी का कुछ नहीं हूँ [ऐसा विचारकर ] (आदे एतं कुणदु) आत्मा में एकत्व करो ( जेण दु सिग्धं हि सिज्झेज्जा) जिससे शीघ्र ही सिद्ध हो जावे । अर्थ – हे जीव ! कोई मेरा कुछ नहीं है और मैं भी किसी का कुछ नहीं हूँ, ऐसा विचार कर निज आत्मा में एकत्व करो, जिससे शीघ्र ही सिद्ध हो जावे । व्याख्या - हे चैतन्यात्मन् ! सतत् इस प्रकार का विचार करो कि जगत का अन्य कोई जीव- अजीव पदार्थ तो ठीक यह देह, वचन और मन भी मेरे नहीं है, और वस्तु स्वभाव से मैं भी किसी का नहीं हूँ। ऐसा विचारकर निज ज्ञायक स्वभाव में स्थिर होओ। इससे शीघ्र ही सिद्धि हो जावेगी । यह मोक्षमार्ग है तव दिट्ठी जत्थ अस्थि, तत्थ करेह णियल्लपुट्ठी य । णाणेण सव्वचेट्ठ, करसु एसो हि मोक्खपहो ॥51॥ अन्वयार्थ—(तव दिट्ठी जत्थ अत्थि ) तुम्हारी दृष्टि जहाँ है (तत्थ करेह णियल्लपुट्ठी) वहाँ अपनी पीठ करो (य) और ( णाणेण सव्व चेट्ठा, करसु) ज्ञान पूर्वक सब चेष्टा करो ( एसो हि मोक्खपहो) यह ही मोक्षमार्ग है। अर्थ – जहाँ तेरी दृष्टि है, वहाँ अपनी पीठ करो और सब चेष्टा ज्ञानपूर्वक करो, यह ही मोक्षमार्ग है। व्याख्या - हे जीव ! निज स्वरूप से विपरीत विषय कषाय और राग-द्वेष की ओर से दृष्टि हटाकर ज्ञायक स्वभाव की ओर दृष्टि तथा जगत के पदार्थों की ओर पीठ करो। ज्ञान पूर्वक संसारी - जनों से विपरीत समस्त चेष्टाएँ करो। यही मोक्षमार्ग है। आत्मा ज्ञानस्वभाव संपन्न है धण-धण्णादि अण्णा, इत्थीपुत्तादिकुडुंबसम्बन्धा । देहो कम्मं च तहा, अत्तादो णाणसंपण्णा ॥52 ॥ अन्वयार्थ - ( णाण संपण्णा) ज्ञान संपन्न ( अत्तादो) आत्मा से ( धणधण्णादि) धन धान्यादि ( इत्थीपुत्तादिकुडुंबसम्बन्धा) स्त्री पुत्रादि कुटुम्ब संबन्ध (च) और (देहो तहा कम्मं ) देह तथा कर्म (अण्णा) अन्य हैं। - अर्थ – ज्ञान - संपन्न आत्मा से धन-धान्यादि, स्त्री- पुत्रादि और देह तथा कर्म अन्य हैं। 276 :: सुनील प्राकृत समग्र
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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