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________________ पुग्गलविवाइ देहोदयेण, मण-वयण-कायजुत्तस्स। जीवस्स जा हु सत्ती, कम्मागम-कारणं जोगो॥216॥ पुद्गल विपाकी देह कर्म के उदय से, मन, वचन, व कायरूप जो जीव की शक्ति है, वह कर्मों के आगमन में कारणभूत योग जानो। वस्तुतः जो पुद्गल की रचना है, उसे पौगलिक तथा स्व को स्व जानकर शाश्वत निजात्म द्रव्य में ही लीन होना कल्याणकारी है। योग-वेद-रहितोऽहम् ॥17॥ मैं एक हूँ सासदो सुद्धएगो हं, णाणजोदी सणादणो। अप्पभावादु अण्णं जो, मज्झत्तो बाहिरो सदा॥18॥ अन्वयार्थ-(हं) मैं (एगो) एक (सासदो) शाश्वत (सुद्ध) शुद्ध (णाणजोदी) ज्ञानज्योति (सणादणो) सनातन आत्मा हूँ (जो) जो (अप्पभावादु अण्णं) आत्मभाव से अन्य है [वह] (मज्झत्तो) मुझसे (सदा) हमेशा (बाहिरो) बाह्य है। अर्थ-मैं एक, शाश्वत, शुद्ध, ज्ञानज्योति, सनातन आत्मा हूँ, जो आत्मस्वभाव से अन्य है वह मुझसे हमेशा बाह्य है। व्याख्या-छह द्रव्यों में प्रथम क्रम पर जीव आता है। जीवत्व की अपेक्षा अनंतानंत जीवों को एक जीव द्रव्य में गर्भित कर लिया जाता है। वस्तुत: जीवराशि अक्षयानंत है और प्रत्येक जीव स्वतंत्र है। एक जीव किसी अन्य द्रव्य अथवा दूसरे जीव से बंधा हुआ नहीं है। इसलिए अन्यद्रव्यों से पृथक् 'एक'। वस्तुस्वभाव से यह जीव कर्म-नोकर्म आदि से शून्य होने के कारण 'शुद्ध'। जीव की सत्ता कभी किसी प्रकार से नष्ट नहीं हो सकती, अतः 'शाश्वत्' । ज्ञान जीव का लक्षण है, वह जीव के अलावा अन्यत्र नहीं पाया जाता इसलिए जीव ही 'ज्ञानज्योति' है। इसलिए इस निजात्मा के अलावा और अन्य जो भी कर्म-नोकर्म के वैभाविक परिणाम हैं, वह मुझसे वस्तुदृष्ट्या पृथक् ही हैं, बाह्य हैं। आचार्य पूज्यपाद ने इष्टोपदेश में लिखा है एकोऽहं निर्ममः शुद्धो, ज्ञानी योगीन्द्र गोचरः। बाह्याः संयोगजः भावाः, मत्ताः सर्वेऽपि सर्वथा ॥27॥ अर्थात् मैं एक हूँ, निर्मम हूँ, शुद्ध हूँ, ज्ञानी व योगीन्द्रगोचर हूँ; बाह्य संयोगी भाव मुझसे सर्वथा पृथक् हैं। निज स्वसंवेदन ज्ञान के बल से निश्चय रत्नत्रयात्मक निजात्म-तत्त्व का ही आलंबन लेने से ‘एकत्व भावना' सार्थक होती है। 'बाह्य संयोग रहित एकत्व स्वरूपोऽहम्'m8॥ भावणासारो :: 201
SR No.032393
Book TitleSunil Prakrit Samagra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain, Damodar Shastri, Mahendrakumar Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2016
Total Pages412
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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