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________________ दीक्खुच्छवो महुवणे महुमास - सुण्णे । सोवण्ण-अक्खर - णिरुविद कूड- गूंजे ॥ 3 ॥ संघ में सूरी विमल सं 2019 सन् 1962 जयकार से परिपूर्ण हो गया। मधुबन ( शिखर जी तलहटी) में दीक्षा उत्सव द्वादशी - कार्तिक का मधुमास बिना मधुबन वासंती छटा युक्त हो गया । यह स्वर्णाक्षरों में अंकित इस क्षेत्र में प्रत्येक कूट में व्याप्त हो गया । 4 जे जे वि संघ - विमलंगण - मज्झ-अत्थि ते ते सिरीफल समिप्प णिवेदति । आसास-वंत- मणुजा विहरेज्ज संघो धम्मप्पहावण सुवंदण -‍ - गच्छमाणा ॥4॥ जो जो भी संघ विमलांगन में स्थित थे वे सभी श्री फल समर्पित कर चातुर्मास का निवेदन करते हैं । वे आश्वासन युक्त विहार में सहभागी हुए । संघ भी धर्म प्रभावना एवं उत्तम वंदनादिपूर्वक गतिशील रहा। 5 तेसट्ठि - वास- वरिसाइ अवार-णंदो चाहि संग-तव-संजम - भावणाए । सो सम्मदी वि तव - झाण-कुणंत- णिच्चं सज्झाय-सामइग-अज्झयणेण णाणं ॥5॥ वे सन्मतिसागर सन् 1963 के वर्षा वास में अपार आनंद युक्त त्याग, तप संयम एवं भावना के साथ निरंतर तप- ध्यान, स्वाध्याय, सामायिक एवं अध्ययन से ज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं । 6 कायोस्सगे खडग-आसण जुत्तए सो साहू हु काल - उववास - दुवे-चदुहे । सामाइगे वि हविहेज्जदि वे वि काले पुच्छेंति सावग-जणा मुदएदि तस्सिं ॥6॥ वे सन्मतिसागर कायोत्सर्ग, खडगासन में स्थित मुनि-अवस्था में दो चार दिन के उपवास में रत सामायिक भी दो दो घंटे करते हैं। श्रावक जन पूछते तो भी वे उस पर हँस देते हैं। 86 :: सम्मदि सम्भवो
SR No.032392
Book TitleSammadi Sambhavo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2018
Total Pages280
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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